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चतुर्य अहिरवेद : पात्रो का विवेचन
वर (ऋषभदेव) को उनके वैवाहिक जीवन से सम्बन्धित कर्तव्यों की शिक्षा प्रदान करता है।
"त्वं परां नृषु यथा चसि कोटिं स्त्रीष्वि में अपि तथा प्रथितेतत्। प्रेम्णि वीक्ष्यं धनतां जनता वः स्थैर्यमावहतु दंपतिधर्मे।।"
प्राप्तकालमिति. ....प्रथमनाथनवोढ़े।। यस्य दास्यमपि.........भवत्यौ।। देवदेवद्धदि......वामपि कामम् ।
इत्यादि प्रकार से वर-वधू को शिक्षा प्रदान किया जाता है।
पुनः एकादश सर्ग में इन्द्र का आगमन होता है उनके द्वारा गर्भिणी सुमंगला की प्रशंसा की जाती है।
"सूते त्वया पूर्वदिशात्र भास्वत्युल्लासिनेत्राम्बुजराजि यत्र। दृष्टामृताघ्राणसुखं वपुर्मेसरस्यते तद्धिनमर्थयेऽहम्॥" "प्राप्ता भुवं....अपिबोधितारः।।" "अस्मिन्न मौकासन.......लक्षयितामरोधः।।" "अस्मिन्नसिव्यगृकरे.......गुरुतां तथान्ये।"
इत्यादि श्लोकों द्वारा सुमंगला की प्रशंसा की जाती है।