________________
चतुर्थ सरिलोद : पात्रो का विवेचन
वह अत्यन्त हर्षित होती है तथा उनके वाणी की माहिमा का वर्णन करती हैं।२७ तदुपरान्त दशवें सर्ग में ही गर्भिणी सुमंगला के विषय में उनकी सखियों के बीच आलाप-प्रत्यालाप होता है! फिर एकादश सर्ग में इन्द्र का आगमन होता है और उनके द्वारा सुमंगला की प्रशंसा की जाती हैं। इन्द्र कहते है कि हे सुमंगला-तुम्हारा पुत्र 'भरत' नाम धारण करेगा तथा यह पृथ्वी (उसी के नाम से) 'भारती' के नाम से विख्यात होगी जिसका वह स्वामी होगा।
"आस्मिन दधाने भरता भिधानमुपेष्यतो भूमिरियं च गीश्च। विद्वद्भुवि स्वात्मनि भारतीति,
ख्यातौ मुदं सत्प्रभुक्ताभजन्माम्।।८" तदुपरान्त इन्द्र का प्रस्थान होता है और इन्द्र के चले जाने पर सुमंगला दुःखी हो जाती है। इसके बाद सुमंगला का सखियों द्वारा स्नानादि कराया जाता है तथा काव्य समाप्त हो जाता है।
इस प्रकार सुमंगला सुन्दर गुणों से युक्त, पति के प्रति स्नेह, आगन्तुकों के प्रति भक्ति भाव, सखियों के प्रति स्नेह रखने वाली, पति पर पूर्ण भरोसा रखने वाली, धर्मनिष्ठ, बुद्धिमान, अतिसुन्दर यशस्वी पुत्र प्राप्त करने वाली, धैर्य धारण करने वाली आदि गुणों से युक्त होकर काव्य की मुख्य नायिका के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं।