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________________ चतुर्थ परिद : पात्रो का विवेचन भगवान् ऋषभदेव लोकोत्तर ज्ञानवान नायक है वे त्रिलोकों के रक्षक, त्रिकाल के ज्ञाता और त्रिज्ञान के धारक है पातुस्त्रिलोकं विदुषस्त्रिकालं, त्रिज्ञानतेजो दधतः सहोत्थम्। स्वाभिन्नतेऽवैमि किमप्यलक्ष्यं, प्रश्नस्त्वयं स्नेहलतैकहेतुः।।११ महाकवि जयशेखर सूरि द्वारा ऋषभदेव के समस्त गुणों का समाहार इस प्रकार किया गया है वयस्यनंगस्य वयस्यभूते भूतेश रुपेऽनुपमस्वरूपे। पदींदिरायां कृतमन्दिरायां, को नाम कामे विमनास्त्वदन्यः।।१२ स एव देवः स गुरुः स तीर्थं, स मङ्गलं सैष सखा स तातः। स प्राणितं स प्रभुरित्युपासा,मासे जनैस्तद्गतसर्वकृत्यैः।।३ अन्यया ऋषभदेव सदगुण-ग्रामगानपरया रयागता। लभ्यते स्म लघु तामुपासिंतु, किम न किन्नरवधूस्वशिष्यताम्।।१४ १. कुलीन, २. शीलवत, ३. वयस्थ, ४. शोचवन्त, ५. संततव्यय, ६. प्राप्तिवन्त, ७. सुराग, ८. सावयन्वत्, ९. प्रियवद, १०. कीर्तिवन्त, ११. त्यागी, १२. विवेकी, १३. शृङ्गारवन्त, १४. अभिमानी, १५. श्लाघ्यवन्त,
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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