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तृतीय परिकलेट :
जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव
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का स्थूल स्वरूप ही त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित से ग्रहण किया है। प्रत्युत विभिन्न प्रसंगों में उसके असंख्य भावों तथा वर्णनों को आत्मसात करके काव्य की प्रकृति के अनुरूप उसे प्रौढ़ शैली तथा परिष्कृत भाषा में प्रस्तुत किया है। हेमचन्द्र तथा जयशेखर के मुख्य वृत्त में केवल एक महत्त्वपूर्ण अन्तर है। त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित में सुमङ्गला के चौदह स्वप्नों तथा उसके फलकथन का क्रमशः एक-एक पद्य में सूक्ष्म संकेत है। जयशेखर ने इस प्रसंग का निरूपण दो सर्गों में किया है। जैन साहित्य में ऋषभदेव चरित का प्राचीनतम निरूपण उपांगसूत्र जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में हुआ है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का संक्षिप्त विवरण ऋषभदेव चरित की कतिपय सूक्ष्म रेखाओं का आकलन है। उसमें आदि तीर्थंकर के धार्मिक तथा परोपकारी साधन स्वरूप को रेखांकित करने का प्रयत्न है। ऋषभ के सौ पुत्रों में भरत की ज्येष्ठता तथा उनके राज्याभिषेक का संकेत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भी किया गया है।
इस प्रकार हम देखते है कि यद्यपि जैनकुमारसम्भव अन्यान्य अनेक कृतियों से प्रभावित है, तथापि कथावस्तु नेता, रस, छन्द, अलंकार इत्यादि की दृष्टि से कुमारसम्भव से ही पूर्णतः प्रभावित है।