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________________ तृतीय परिच्छेद : अमान जैनकुमारसम्भव की कथा का मूल, कथा वस्तु तथा उस पर प्रभाव ज्यायान् पुत्रशतस्यायमिक्ष्वाकुकुलनन्दनः।।" अर्थात् हे देवि, स्वप्नों में जो तूने सुमेरु पर्वत देखा है उससे मालूम होता है कि तेरे चक्रवर्ती पुत्र होगा। सूर्य उसके प्रताप को और चन्द्रमा उसकी कान्ति रूपी सम्पदा को सूचित कर रहा है। हे कमलनयने, सरोवर के देखने से तेरा पुत्र अनेक पवित्र लक्षणों से चिह्नित शरीर होकर अपने विस्तृत वक्षःस्थल पर कमलवासिनी-लक्ष्मी को धारण करने वाला होगा। हे देवि, पृथिवी का असा जाना देखने से मालूम होता है कि तुम्हारा वह पुत्र चक्रवर्ती होकर समुद्ररूपी वस्त्र को धारण करने वाली समस्त पृथिवी का पालन करेगा और समुद्र देखने से प्रकट होता है कि वह चरमशरीरी होकर संसार रूपी समुद्र को पार करने वाला होगा। इसके सिवाय इक्ष्वाकु-वंश को आनन्द देने वाला वह पुत्र तेरे सौ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ पुत्र होगा। इस प्रकार पति के वचन सुनकर उस समय वह देवि हर्ष के उदय से ऐसी वृद्धि को प्राप्त हुई थी जैसे कि चन्द्रमा का उदय होने पर समुद्र की वेला वृद्धि को प्राप्त होती है जैनकुमारसम्भव में चौदह स्वप्नों तथा स्वप्नों के महाफलों का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि स्वप्न फल विवेचन के लिए जयशेखर ने आदि पुराण से प्रेरणा ग्रहण की है। यद्यपि कवि जयशेखरसूरिजी का कालिदास कृत कुमार सम्भव की भांति जैनकुमार सम्भव का उद्देश्य कुमार (भरत) के जन्म का वर्णन
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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