SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० साधन नहीं है । ब्रह्म का कर्तृत्व परब्रह्म का परिचायक बतलाया गया है। परब्रह्म क्या है ? इसका उत्तर मिला कि "जो सबके अन्दर आनन्द स्वरूप है।" वह सर्वान्तर्यामी आनन्द कैसे है ? इस आकांक्षा पर उसके परिचय के रूप में भूत भौतिक सृष्टि बतलाकर उस आनन्द को ही सबकी अन्तिम श्रेष्ठ परिणति बतलाया गया है, सृष्टि आदि का कर्तृत्व प्रानन्द में ही है, किसी अन्य में नहीं, यह भाव दर्शाया गया है। "योऽन्नं ब्रह्मोपासते" इत्यादि वाक्य में जो गौण रूप से अन्न ब्रह्म की उपासना कही गई है, वह प्रधान प्रानन्द उपासना का एक अंग मात्र है । कत्र्तृत्व के प्रतिपादक वाक्य में अन्यगत कर्तृत्व का आरोपानुवाद भी हो सकता है, जैसे कि "भृगुर्वे वारुणिः" इत्यादि उपाख्यान में गौण कर्तृत्व (आरोपित कत्र्तृत्व) का ही अनुवाद है। कार्य ब्रह्मोपासना का फल ही उक्त प्रसङ्ग में बतलाया गया है, शुद्ध ब्रह्म का नहीं, अतः उसमें कर्तृत्व नहीं है । इत्यादि पूर्व पक्ष है । सिद्धान्तस्तु-"उत्पत्ति स्थिति नाशानां जगतः कर्तृ वै बृहत् । वेदेन बोधितं तद् हि नान्यथा भवितुं क्षमम् ॥ नहि श्रुति विरोधोऽस्ति कल्पोऽपि नविरुध्यते । सर्व भाव समर्थत्वाद् अचिन्त्यश्वर्यवद् बृहत् ॥" वेदेनैव तावज्जगत् कत्तुं वं बोध्यते, वेदश्च परमाप्तोऽक्षरमात्रमप्यन्यथा न वदति । अन्यथा सर्वत्रैवाविश्वास प्रसंगात् । न च कर्तृत्वे विरोधोऽस्ति, सत्यत्वादि धर्मवत् कर्तृत्वस्याप्युपपत्तेः । सर्वथा निर्द्धर्मकत्वे सामानाधिकरण्य विरोधः । सत्यज्ञानादि पदानां धर्मभेदेन व तदुपपत्तेः । न च कर्तृत्वं संसारि धमों देहायध्यासकृतत्वादिति वाच्यम्, प्रापंचिके कर्तृत्वे तथैव, न त्वलौकिककत्तृत्वै । अत एवास्येत्याह-अस्येति पुरोवति प्रपंच इदमा निर्दिश्यते । अनेकभूत भौतिक देवतियङ मनुष्यानेकलोकाद्भुतरचनायुक्त ब्रह्माण्ड कोटि रूपस्य मनसाप्याकलयितुम् . अशक्यरचनस्यानायासेनोत्पत्तिस्थितिभंगकरणं न लौकिकम् । प्रतीतं च निषेध्यम् नाप्रतीतम् न श्रुति प्रतीतम् । सत्यत्वादयश्च लौकिकाः, ततः सर्व निषेधे तदज्ञानमेव भवेत्, न च सत्यत्वादिकं लोके नास्स्येव व्यवहार मात्रत्वात्, कारणगतमेव सत्यत्वं प्रपंचे भासत इति वाच्यम् । तहिं कत्तुं त्वं तथा कुतो नांगीक्रियते । स्मृतिश्च स्वीकृता भवति कर्ता कारयिता हरिरिति । . . . . . . ! ..... .. 'सिद्धान्त यह है कि जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार का कर्ता . ब्रह्म ही हो सकता है, वेद से उसी का कत्तु त्व ज्ञात होता है। किसी अन्य में ..
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy