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________________ ( ५६० ) पूर्णंस्वरूपानन्ददानादिकं लोके क्वचिदपि न दृष्टं श्रुतं वा वैकुण्ठेऽपीति कुतः १: इत्याशंकायामाह तानि, उक्तानि वस्तूनि परे प्रकृतिकाद्यतीते वैकुण्ठाद्यप्युत्कृष्टे श्री गोकुल एव सन्तीति शेषः । तत्रप्रमाणमाह - तथाह्याह श्रुतिः, ऋग्वेदे पठ्यते—- "ता वाँ वास्तू न्युष्मसि गमध्ये यत्र गावोभूरिशृंगा अयासः” ताः तानि, बाँ = भगवत्तदन्तरंगभक्तयोः संबंधीनि, वास्तूनि = वस्तूनि गमध्ये = प्राप्तु, उष्मसि = कामयामहे । तानि कानीत्याकांक्षायां गूढाभिसंधिमुद्घाटयति-यत्र == श्रीगोकुले, गावोभूरिशृंगाः = बहुचं गारुरु प्रभृतयोमृगाश्च वसंतीतिशेषः ।. अयासः शुभावहाः । तत उक्तगुणविशिष्टम् उरुगीयत इत्युरुगायस्तस्य, गोप्योहि सततं तं गायन्ति । अतएव तदादिभक्तेषु कामान् वर्षतीति बृषावस्य परमं प्रकृति कालाद्यतीतं पदं स्थानं भगवतो वैकुण्ठं भवति, तत्रैतादृशलीलाऽभावेन तस्मादपि परममुत्कृष्टम् । अत्र भूमाववभाति प्रकाशत इत्यर्थः । उरु गोयतेपरं सर्वत्र कामवर्षणं भक्तेष्वत्रैवेति तात्पर्येण वा विशेषणद्वयमुक्तम् । यमुना पुलिनतदुपवननिकु जगह्वर प्रदेशाद्रि सान्वाद्यात्मकत्वेन भूरि बहुरूपम् । तथाचैतादृशंयत् परमपदमवभाति तत्संबंधीनि वास्तूनि कामयामह इति बाक्यार्थः सम्पद्यते । ते पदार्था इति वक्तव्ये सति तानीत्युक्तिर्या सा विषय वाक्यानुरोधादिति ज्ञेयम् । पुरुषोत्तमसंबंध्यर्थानां तत्प्राकट्यस्थान एव प्राकट्यं युक्तमिति हि शब्देनाह । हृदय में और बाहर रसात्मक भगवत्प्राकट्य के न होने पर होने वाला विरह, उससे होने वाला ताप, उससे होने वाली मरण स्थिति, उसकी निवृत्ति और विरह की उत्कटता, फिर भगवान का प्राकट्य और फिर पूर्ण - स्तरूपानन्द आदि का दान, इत्यादि सारी बातें लोक या वैकुण्ठ कहीं भी देखी या सुनी नहीं जातीं, फिर ये सारी कल्पना आपने किस आधार पर कर ली ? इस आशंका पर सूत्र प्रस्तुत करते हैं- "तानिपरे" आदि — कहते हैं कि उक्त बातें प्रकृति काल आदि से अतीत वैकुण्ठ से भी उत्कृष्ट गोकुल में हो होती हैं । श्रुति में 'इसका प्रमाण मिलता है— ऋग्वेद में पाठ है- "ता व वास्तून्यु मसि गमध्ये यत्र गावो भूरिशृंगार अयास:" अर्थात् भगवान और उनके अंतरंग भक्तों से संबंधित वस्तुओं को पाने की कामना करते हैं । वे वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं इस आकांक्षा पर गूढतापूर्वक वर्णन करते हैं कि - यत्र अर्थात् जिस श्री गोकुल में, गावो भूरिशृंगारः, अर्थात् गौएँ और अधिक सींगों वाले मृग आदि रहते हैं । जो कि - अयासः अर्थात् बड़े सुशोभित होते हैं उक्त विशेषताओं वाले ब्रज का गोपियां निरन्तर गान करती हैं। भक्तों की अभीप्सि कामनाओं की पूर्ति करने वाला ब्रज, उस वैकुण्ठ से भी उत्कृष्ट है जो कि प्रकृति काल आ
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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