SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 638
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५५५ ) न प्रतीकेन हि सः ।४।११४॥ अतद्रूपेतत्त्वेनोपासनं हि प्रतीकमित्युच्यते । तथा च तादृशेन तेन समोक्षो न भवतोत्यर्थः । श्रु तिसिद्धत्वान्नास्तिमोक्ष इति न मोक्षवक्त शक्यमिति भावः । अथवाऽत्मत्वेनोक्तिरुपासनार्थेति वदन् वादी वक्तव्यः। फलार्थमेव तत्, फलंच श्रु त्युक्तस्तत्प्रवेश एवेति त्वयापि वाच्यम् । एवं सत्यादी ज्ञानमार्गे अनुपपत्तिमाहनप्रतीके अनात्मभूते ज्ञानिन उपागमः पूवोक्तः प्रवेशः संभतीति शेषः। भक्तिमार्गेऽपि तामाह । नहिस इति । नहि प्रतीकोपासने स लोक वेद प्रसिद्धः पुरुषोत्तमोऽस्त्युपास्यत्वेन, येन तत्प्राकट्यं स्यात्, तदुपगमनं चेत्यर्थः एवं ज्ञानभक्त्योः फलसत्ता साधिता। भगवद् विहीन रूप में तत्त्वरूप से की जाने वाली उपासना को प्रतीक कहते हैं । इस प्रकार की उपासना से मोक्ष नहीं होता। इसके मोक्ष न होने की बात श्रु तिसम्मत है अत: मोक्ष होने की बात नहीं कह सकते । आत्मत्वरूप से की जाने वाली उपासना प्रतीक मात्र हो है, ऐसा नहीं है क्योंकि यह उपासना होती फल के लिए ही है, भगवान् में प्रविष्ट हो जाना ऐसा श्रुतिसम्मत फल तो तुम्हें भी स्वीकृत है, अतः पहिले ज्ञानमार्ग में ही मोक्ष की असंभावना की बात कहते हैं कि-अनात्म प्रतीक में, ज्ञानी का प्रवेश संभव नहीं है। भक्तिमार्ग में भी वही बात है। लोक और वेद कही भी पुरुषोत्तम की उपासना प्रतीक रूप से प्रसिद्ध नहीं है प्रतीक में उसका प्राकट्य संभव नहीं है, उसमें प्रवेश भी संभव नहीं है, जबकि ज्ञान और भक्ति दोनों में आत्मत्वरूप से की गई उपासना में फल प्राप्ति होती है, अत: इसे प्रतीक नहीं कह सकते । ननु सर्व खल्विदं ब्रह्म, आत्मवेदंसर्वम् इत्यादि श्रुतयः सर्वत्रब्रह्मदृष्टिं मुक्तिसाधनत्वेन उपदिशंति, सा च प्रतीकात्मिकैवेति, कथं प्रतीकोवासनस्य न मोक्षसाधकत्वमिति प्राप्त उत्तरमाह “यह सब कुछ ब्रह्म है, सब कुछ यह आत्मा है" इत्यादि श्रुतियाँ, सर्वत्र ब्रह्म दृष्टि रखने की बात मुक्तिसाधक रूप से करती हैं यह कथन प्रतीकात्मक ही तो है, फिर प्रतीकोपासना से मोक्ष नहीं होता ऐसा क्यों कहते हो? इस संशय का उत्तर देते हैं ब्रह्मदृष्टिरुत्कर्षात् ।४।१॥५॥ सर्वत्रब्रह्मदृष्टिर्न प्रतीकात्मिका, सर्वस्य वस्तुतो ब्रह्मात्मक त्वात् । सा च
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy