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________________ ( ५६ ) हैं, क्या ऐसे कृपापात्र को वह लीला में कुछ समय तक सम्मिलित कर हटा भी देते हैं ? इस पर कहते हैं कि 'तद्विष्णों: परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः 'वचन से निश्चित होता है कि लीला से अलग नहीं करते है। इससे लीला की नित्यता की पुष्टि होती है। पंचम अधिकरण ज्ञानमार्गीय जीव का उत्क्रमण प्रकार लोक साधारण से विलक्षण होता हैं क्या? इस पर सिद्धान्तत: विलक्षण उत्क्रमण का सम्मोदन करते हुए छान्दोग्य का "शतं चैका च पुरुषस्य नाड्यः" वाक्य प्रस्तुत करते हैं। षष्ठ अधिकरण 'इस शरीर से उत्क्रमण कर सूर्य राश्मियों के आश्रय से ऊपर जाता है । 'इत्यादि में जो उत्क्रमण प्रकार बतलाया गया है वह ज्ञानी और अज्ञानी दोनों का ममान रूप से है क्या ? इसका समाधान करते हैं कि ज्ञानी ही सूयरश्मियों के आश्रय से उत्क्रमण करता है। उक्त प्रसंग में आदित्य शब्द आदित्यांश ते जो रूप पित्त ते शरीरस्थ तत्व का बोधक है, पित्तस्थ नाडियों से ज्ञानी का ही उत्क्रमण संभव है सामान्य जीव का नहीं । ज्ञान मार्ग और योग मार्ग भिन्न है, योग मार्ग वालों के लिए उत्तरायण आदि काल विशेष का नियम कहा गया है ज्ञानमार्ग वालों के लिए नहीं। तृतीय पाद प्रथम अधिकरण ज्ञानमार्गी के समान ही क्या मर्यादा मार्गी भी अचिरादि मार्ग से गमन करते हैं अथवा उनकी सद्योमुक्ति हो जाती है ? इस पर सिद्धान्त निश्चित करते हैं कि ज्ञान मार्गी के लिए हो अचिरादि मार्ग है, मर्यादी भक्त को तो सद्योमुक्ति ही होती है। द्वितीय अधिकरण छान्दोग्य में वचन हैं कि “विद्यु दनन्तरं तत्पुरुषोऽमानवः स एतान् ब्रह्म गमयति" इसमें विद्य लोक के बाद दिव्य पुरुष द्वारा साधक को ब्रह्मलोक पहुँचाने की चर्चा की। इस पर संशय होता है कि छान्दोग्य की उक्ति से बह्म लोक प्राप्ति की वात निश्चित हो जाती है किन्तु अन्यत्र तो वरुणादि लोक की चर्चा और दिव्य पुरुष की चर्चा न होने से ब्रह्मालोक की प्राप्ति
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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