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________________ (४८१ ) ऐसा संशय होता है । इस पर पूर्वपक्ष तो कहता है कि-मनुष्यता शत्रुता आदि को तरह, काम आदि भाव होने से स्नेह भाव भी है, अतः यह अलौकिक नहीं हो सकता सिद्धान्त से इसे लौकिक से श्रेष्ठ माना गया है । __ननूक्तं लोकसाधारण्यं बाधकमिति शंका निरासाय निदर्शनमाह-ऋतुवदिति-यथा दर्शादिषु दोहनाधिश्रयणातंचननीयवधातादिपुरोडाश भक्षणादीनां लौकिकक्रियातुल्यत्वेन दर्शनेऽपि न लौकिकत्वम, । लौकिकप्रमाणाप्राप्तस्वादलौकिकतत्प्राप्तत्वात्तथोक्त प्रमाणरूपवरणलभ्यत्वेन श्रुत्युक्तत्वान्न लौकिकत्वमस्य भावस्येतिदिक् । संशय होता है कि-लोक साधारणता का भाव हो उक्त सर्वात्म भाव में बाधक होता है। इसके निराकरण के लिये सूत्रकार निदर्शन करते हैं कि"क्रुतुवत्" अर्थात् जैसे दश आदि यज्ञों में, दोहन अधिश्रयण, तंचन, ब्रीहि अवधात और पुरोडाश भक्षण आदि लौकिक कार्य की। तरह दीखते हुए भी लौकिक नहीं है, वैसे ही, सर्वात्मभाव भी लौकिक नहीं हैं, सर्वात्मभाव को कहीं भी लौकिक नहीं कहा गया अलौकिक रूप से ही इसकी गणना की गई है अलौकिक रूप होने से परमात्मा का वरण भी प्राप्त होता है । श्रुति में भी इसका उल्लेख है । ___ वस्तुतस्तु ग्रामसिंहस्य सिंहस्वरूपत्वेऽपि न ताद्रूप्यं वक्तुं शक्यम् । तथा लौकिक पुसि नार्या वा तदाभासो रसशास्त्रेनिरूप्यते । तद् दृष्टान्तेन भगवद् भाववद् भक्तिरिति भावनार्थं न तु ऋषीणां लौकिके तात्पर्य भवितुमर्हति । अत्रोपपत्तिमाह-तथाहि इत्यादि । पूर्वोक्त भाववत् आत्मनः प्राणदिकं सर्व दर्श यति श्रुतिः “तस्य हवा एतस्यैव पश्यत, "इत्यादिना इतः पूर्वमपि-"स वा एष एवं पश्यन् इत्युपक्रम्य" आत्मरतिरात्मक्रोड आत्म मिथुन आत्मानंद स स्वराड् भवति सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति" इति श्रुतिश्च । नहिलोक एवं सम्भवत्यात्मपदानां भगववाचकत्वादिति, सर्वोत्तम विषयकभाव स्यैव तथात्वं युक्तमिति, चोपपत्तिहि शब्देन सूच्यते । वास्तव में, गांव में पालित सिंह का स्वरूप सिंह की तरह होते हुए भी उन्मुक्त बनराज के समान रूप वाला तो कह नहीं सकते । रसशास्त्र में, सामान्य स्त्री पुरुषों में होने वाला भाव रसाभास मात्र ही माना गया है। उक्त दृष्टांत में दिखलाया गया है कि-भगवद् भाव की तरह, भक्ति भाव भी है । ऋषिओं का कथन, लौकिक तात्पर्य वाला नहीं हो सकता । पूर्वोक्त भाव की तरह श्रुति इसमें भी, प्राण आदि सब कुछ दिखलाती है। "तस्य हवा
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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