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________________ ( ४७६ ) वत्वेनैवज्ञानिनामक्षर विज्ञानं, भक्तानामेव पुरुषोत्तमाधिष्ठानत्वेन तथेति ज्ञेयम् । "मल्लानामशनिः" इति श्लोकोक्तरीत्या पुरुषोत्तमस्येव प्रभुणा ये यथा विचारितः सन्ति ते तथा भवन्ति इतितद् विचार एव सर्वेषामधिकार रूप इति कृतप्रयत्नापेक्षास्त्वित्यत्र निर्णीतम् । इस प्रकार सच्चिदानन्दत्व, देशकाल अपरिच्छेद, स्वयंप्रकाशत्व, गुणातीतता आदि धर्मों वाला ही ज्ञानियों का अक्षर विज्ञान है तथा भक्तों का उक्त गुणों वाला पुरुषोत्तम भी है। श्री भागवत के "मल्लानामश निः" इत्यादि श्लोक में पुरुषोत्तम के ही स्वरूप का वर्णन है उक्त श्लोक में दिखलाया गया है कि जो जैसा विचार करता है, प्रभु तदनुसार ही रूप धारण करते हैं, वह विचार ही सबका अधिकार सिद्ध करता है, इससे यही निर्णय होता है. कि-प्रभु साक्षात्कार प्रयत्न सापेक्ष है । अस्मिन्नर्थे कैमुतिकन्यायकथनार्थ निदर्शनत्वेनोत्तरं पठति इस अर्थ में कैमुतिकन्यायानुसार निदर्शन रूप से उत्तर देते हैंअंगावबद्धास्तु न शाखासु हि प्रतिवेदम् ।३।३।५५।। यागे तत्तद् ऋत्विनियतकर्तव्यान्यन्वाधानादीन्यंगानि तत्रावबद्धाः सर्व एकत्विजो यजमानेन । 'अवबंधनं नामाध्वयु त्वां वृणे होतारं त्वां वृण उद् गातारं त्वां वृणे" इत्यादि रूपं वरणमेवान्यथा सर्व कर्म विदुषां तत्कृतिपटूनां एकत्राधिकारो, नान्यत्रेति नियमो न स्यात् । तस्य तस्य यथा वरणे तु यजमात्रेच्छेव हेतुः । ते च तदा न सर्वास शाखासु विहितान्यंगानि कर्त्त सर्वेऽपि शक्ताः, किन्तु यजमान वरण नियमता एव तथा । तत्र हेतुमाह । हि यतः कारणात्. प्रतिवेदं नियमितान्यंगानि, हौत्रमृचाऽध्वर्यवादि यजुषौद्गात्रं साम्नेति । तथा च अलौकिके वैदिके कर्मणि जीवेच्छापि नियामिका भवति यत्र तत्र किमुवाच्यं प्रतिरोमकूपं सावकाशममितब्रह्माण्डस्थितिमतस्तदीशितुरिच्छेव . नियामिका तत्तत्साधनफलसंपत्ताविति । यज्ञ में, ऋत्विक द्वारा नियत कर्तव्य, अन्वाधान आदि अंगों से सभी ऋत्विक बंधे रहते हैं, उस बंधन में भी यजमान की वरण रूप क्रिया हो कारण होती है-"अवबंधन नामक अध्वर्यु के रूप में तुम्हें वरण करता हूँ, होता के रूप में तुम्हें वरण करता हूँ उद्गाता के रूप मैं तुम्हे वरण करता है।"
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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