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________________ ( ४४७ ) से कहे गये वाक्यों के सम्बन्ध में भी समझना चाहिये, ये भावोद्रेक अवस्था के प्रलपमात्र है, वास्तविकता नहीं। दूसरी बात ये हैं कि उद्देश्य विधेय भाव की स्फूर्ति में, अद्वतज्ञान नहीं रहता, किन्तु भावना मात्र रहती है । भक्तों के विरह भाव में, अखण्डतदात्मकता का स्कुरण होता है, जिससे वे भगवान की लीलाओं को स्वत: करते हैं, इस तथ्य को हमने भागवत दशमस्कन्ध को विवृति में भलीभाँति समझाया है । अतः जो मुख्य अद्वैत ज्ञान है, वह भी भक्ति भाव के संचारो भावों में से एक भाव है। सरसों और स्वर्णाचल के तुल्य ज्ञान और भक्ति की तुलना कैसी की जा सकती है। कामादीतरत्र तत्र चायतनादिन्यः ।३।३।३८।। . पूर्वसूत्रे-शास्त्रोक्ताखिलसाधनरूपत्वंभक्तरुक्तम् तद्दाार्थमधुना मुक्ति' प्रतिबन्धकत्वेन हेमत्वेनोक्तानां कामादीनामपिभगवत्सम्बन्धान्मुक्ति साधक-- त्वमुच्यते । भक्तिस्तु विहिताऽविहिता चेति द्विविधा । माहात्म्यज्ञानयुतेश्वरत्वेन' प्रभौनिरुपधिस्नेहात्मिकाविहता । अन्यतोऽप्राप्तत्वात् कामायुपाधिजा सात्वविहिता । एवमुभयविधाया अपितस्या मुक्तिसाधकत्वमित्याह । इतरत्र विहितभक्तेरितिशेषः । कामाद्यपाधिस्नेहरूपायां कामाधव मुक्तियाधनमित्यर्थः । भगवतिचित्तप्रवेशहेतत्वात् । आदिपदात पुत्रत्वसम्बन्धित्वादर्थः स्नेहत्वाभावेऽप्यविहितत्वभगवद्विषयकत्वयौरविशेषाद् द्वेषादिरपि संगृह्यते तेन भगवत् संबंधमात्रस्य मोक्षसाधकत्वमुक्तं भवति तत्र विहित भक्तावित्यर्थः । शास्त्रे सर्वथा हेयत्वेमोक्ता गृहाः । सर्व निवेदन पूर्वकं गृहेषु भगवत्सेवां कुर्वतां तदुपयोगगित्वेन तेभ्यएव मुक्तिर्भवतीत्यर्थः। एताहशानां गृहा भगवद् गृहा एवेति ज्ञापनायायतनपदम । तेषुतथा प्रयोग प्राचुर्यात् । आदिपदेन स्त्रीपुत्र' पश्वादयः संगृह्यन्ते । एतेन ज्ञानादिमार्गादुत्कर्ष उक्तो भवति । बाधकानपि साधकत्वात् । माहात्म्यज्ञान पूर्वकस्नेहे सत्येव भतृत्वेन ज्ञाने कामोऽपि संभव-- तीति ज्ञापनाय चकारः। पूर्व सूत्र में - शास्त्रोक्त अखिल साधन के रूप में भक्ति को बतलाया गया, उसी को दृढ करने के लिए अब, मुक्ति के प्रतिबन्धक हेय रूप से प्रसिद्ध काम क्रोध आदि का भी भगवत सम्बन्ध हो जाने से मुक्ति साधकरूप से वर्णन करते हैं । भक्ति विहिता और अविहिता भेद से दो प्रकार की है। माहा
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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