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________________ कहता है कि नहीं रहता । सिद्धान्ततः यथाधिकार कर्तव्य की अर्हता स्वीकारते हैं । भक्तिमार्ग में मर्यादा और पुष्टि दो भेद हैं । पुष्ट भक्तों की यह धारणा होती है कि मेरे कर्म करने में प्रभु की इच्छा हो श्रेष्ठ है, वह जो निश्चित करते है, उन्हीं को कराते हैं, उनकी जिस कर्भ को करानी की इच्छा नहीं होती, उसका निर्धारण नहीं करते अतः वह उन्हें नहीं करता, जैसे कि जड़ वस्तु चेतन की इच्छा से प्रवृत्त होती है। इस स्थिति में प्रभु इच्छा का ज्ञान होने में यदि संदेह हो तो कर्म करना कर्तव्य है । वैसे पुष्टि मार्गीय भक्त के लिए वेद मार्ग को रक्षा और लोक संग्रह के लिए भी कार्य करना चाहिए। मर्यादा मार्गीय मध्यम अधिकारी है अतः उसमें जो कामसंगादिजनित की मलिनना होती है जो कि भगवत् सानिध्य प्राप्ति की प्रतिबन्धक है उसे हटाने के लिये शास्त्र विहित कर्म लाभदायी हैं। षोडश अधिक रण भक्ति में जब सर्वात्मभाव हो, तब विहित कार्य और ज्ञान भक्तिसाध्य हैं या नहीं ? पूर्वपक्ष कहता है कि हैं, सिद्धान्त निश्चित करते हैं कि नहीं हैं। क्योंकि इस स्थिति में भगवान उसका वरणकर लेते हैं। सप्तदश अधिक रण ___ कहते हैं कि काल अदृष्ट आदि प्रतिबन्धकों के रहते क्या सर्वात्मभाव संभव है। प्रतिबन्धकों की निबृत्ति होने पर ही सर्वात्मभाव होता है ऐसा पूर्वपक्ष है। इस पर सिद्धान्त निश्चित करते हैं कि परब्रह्म सर्वश्रेष्ठ है काल आदि से भी बलवान हैं अतः सर्वात्मभाव में प्रतिबन्धकों की निवृत्ति आवश्यक नहीं है। सामोपनिषद् में "यौवै भूभा तत् सुखम्" इत्यादि में सुखबाहुल्यस्वरूप ब्रह्म का स्वरूप बतलाते हुए कहते हैं कि जिसकी उपासना करने पर उपासक न किसी को देखता है, न सुनता है न जानता है" यह सर्वात्मभाब के स्वरूप का ही विवेचन है । उसके विरह भाव में तो इतनी प्रगाढ़ता आ जाती है कि वही चारो ओर दृष्टिगत होता है। इस सर्वात्म भाव की जो प्रबलता दिखलाई गई हैं वह काल आदि से बलीयसी है। अष्टादश अधिकरण "ब्रह्मविदाप्नोतिपरम्" श्रुति में अक्षर ब्रह्म के ज्ञाता की परब्रह्म प्राप्ति बतलाई गई है । इस पर संशय करते हैं कि केवल अक्षर ब्रह्म का ज्ञान ही पर ब्रह्म की प्राप्ति कराता है या उसमें किसी अन्य साधन की भी अपेक्षा होता है।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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