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________________ ३२८ होगा, फिर योग्य उत्तम शरीर कैसे हो सकता है ? इस पर कहते हैं कि अन्न अशुद्ध नहीं होता, ऐसा "देवता अन्न की आहुति देते है उस आहुति से वीर्य बनता है" इत्यादि देवताओं द्वारा आहुति रूप अन्न का उल्लेख मिलता है, अतः वह अन्न शुद्ध ही रहता है। जो जीव पंचाहुति विधान से अन्न से वीर्य भाव को प्राप्त होते हैं, उनकी संस्कार से शुद्धि होती है। यदि संस्कारों का विधान न होता तो जीवों की क्या गति होती ? संस्कार शब्द का भी स्पष्ट उल्लेख है। अतः अन्न शुद्ध ही रहता है। रेतः सिग्योऽथ ।३।१॥२६॥ पंचमीमाहुतिं विचारयति । ननु कथं पुरुषेऽन्नहोमाद् रेतो भावः । बाल्यकौमार वार्द्ध केषुव्यभिचारात् । तारुण्येऽपि न हि सर्वमन्नं रेतो भवति । जातमपि न नियमेन योनौ सिच्यते । नापि देवापेक्षा। पुरुषप्रयत्नस्य विद्यमानत्वादित्याशंक्य परिहरति-रेतः सिग्योगः। पुरुष शब्देन पौरुषधर्मवानुच्यते, पौरुषं च देशकाल संविधानेन मंत्रवद्रतः सेक सामर्थ्यम् । न ह्य तत् सार्वजनीनं सार्वत्रिकं वा । बदर्थ देवापेक्षा । तथा सति न कोऽपिव्यभिचारः कथं पुरुष शब्द मात्रेण च ज्ञायते ? तत्राह-अथ आनन्तर्यात् शरीरार्थमेव देवस्तत्र तत्र होमः कृतः । तत् कथं पंचमाहुतावेवान्यथा भवेत् । तस्मादानंतर्यात् पुरुषाहुति नरेतःसिग्योगः । योग शब्देनात्रापि अन्याधिष्ठानेन रेतः सिग्योगाभावः । अब पांचवी आहुति पर विचार करते हैं। संशय करते हैं कि पुरुष में अन्न के होम से रेत कैसे होता है ? यदि ऐसा होता तो बाल्य, कौमार और बद्धिक्य में क्यों न दीखता । तारुण्य में भी सारा का सारा अन्न तो रेत (वीर्य) बन नहीं जाता । जो भी बनता है, वह सारा ही तो योनि में सींचा नहीं जाता। इस सिंचन कार्य में देव की अपेक्षा भी नहीं देखी जाती। सिंचन तो पुरुष के प्रयास से ही होता देखा जाता है । इत्यादि शंका करते हुए परिहार करते हैं । कहते हैं कि-सिंचन करने से वीर्य ही पुरुष नामवाला होता है । पुरुष के प्रयास की जो बात कही सी, पौरुष धर्मवान् को ही पुरुष कहा गया है। देश काल के अनुसार, मंत्र शक्ति की तरह, वीर्य सिंचन के सामर्थ्य को ही पौरुष कहते हैं । यह सामर्थ्य सार्वजनीन और सार्वत्रिक नहीं होती। इसमें देव की अपेक्षा रहती है, बिना इन्द्रिय के अधिष्ठातृ देवता की कृपा के ये सामर्थ्य संभव नहीं है। देव कृपा से कोई अड़चन नहीं रहती। विवरण में तो केवल पुरुष होने मात्र का उल्लेख हैं, समस्त अन्न वीर्य कैसे बन जाता है इसका तो कोई उल्लेख है नहीं ? इसका उत्तर देते हैं कि होम के बाद वह अन्न धीरे-धीरे वीर्य बनता है, शरीर के
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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