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________________ ३२१ तत्रापि च तद्व्यापारादविरोधः ।३।१।१६॥ __किंचिदाशंक्य परिहरति । ननु नरकेषु चित्रगुप्तादयो भिन्ना एवाधिकारिणः संति । तथा सति तृतीयः पक्षः स्यादत आह । तत्र नरकादिषु ये अधिकारिणस्ते यमायत्तास्तत्सेवकाः । अतोयमस्यैव तत्रापि व्यापारान्न तृतीय पक्ष प्राप्तिः । चकारात् सुखदुःख योगेऽपि । तृतीय पक्ष एव विरोधः अथवा यम गतेमन्त्रलिंगसिद्ध पापस्य च पौराणिकत्वे चन्द्रगतिरेकैव स्यादिति विरोधः । तेषां यम सेवकत्वे तु मंत्रलिंगपोषकत्वान्मार्ग दृयसिद्ध रविरोधः । तस्माद् यमगतिरतिस्तीति सिद्धम् । कुछ संशय करते हुए परिहार करते हैं। कहते हैं कि नरकों में चित्रगुप्त आदि भिन्न अधिकारी हैं, तो फिर यमगति की बात कैसे कही जाती है ? उसका उत्तर देते हैं कि नरकादि में जो अधिकारी हैं वे सब यम के अनुचर सेवक हैं, इसलिए जो भी यातनायें दी जाती हैं वे सब यम सम्मत होने से यम की ही कहलाती हैं । सुख-दुःख को भोग का आधार मानें तो भी यम का अधिकार निश्चित होता है । इस यम गति को चन्द्रगति के अवान्तर नहीं कह सकते क्योंकि-श्रुतियों में इसका नाम देकर उल्लेख किया गया है, पाप के नियमन की बात पुराणों में भी कही गई है। चित्रगुप्त आदि का यम सेवक होना भी श्रुतिमंत्रों से सिद्ध है अतः दो पृथक मार्गों की बात निश्चित हो जाती है। और यमगति का अस्तित्व भी निश्चित हो जाता है। विद्याकर्मणोरिति तु प्रकृतत्वात् ।३।१।१७॥ साधारणत्वाभावाय पूर्वोक्तार्थसाधकमधिकरणमारभते । ननु-"ये के चास्माल्लोकात् प्रयान्ति चन्द्रमसेव तेसर्वे गच्छन्ति" इत्यस्या श्रुतेः का गतिः? पंचाग्नि विद्या प्रस्तावे वा यमगतिः कुतो नोक्ता ? तस्माद् वेद विरोधान्न तृतीय पक्ष सिद्धिः इत्याशंका परिहरति तु शब्दः । अत्र वेदान्ते गौणमुख्यफलदेहाथ विद्याकर्मणोरेव हेतुत्वेन निरूपणं, विद्ययादेवयानं, कर्मणा सोमभाव इति । तयोरेव प्रकृतत्वात्, कारणत्वात । तेन कौषीतक्रि ब्राह्मणेऽपि प्रकृतत्वात् कर्मिण एव सर्व शब्देनोक्ताः । अत्रापि न यम मार्ग उक्तः । तस्माद् विद्याकर्मणोर्मुख्यत्वान्मार्गद्वयमेवोक्तम् । नैतावतातृतीय बाधः । यम गति की विशेषता दिखलाने के लिए नए अधिकरण का प्रारंभ करते हैं। प्रश्न होता है कि-'ये के चास्माल्लोकात्' इत्यादि श्रुति में, किस गति का उल्लेख है ? पचाग्नि विद्या के विवरण में यमगति का उल्लेख क्यों नहीं किया फा०-५
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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