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________________ द्विविधा, वैदिक गृह्यष्मार्त भेदेन । तत्र गृह्यस्मार्ते यमः । श्रौते सोमभावः । तत्र त्रेताग्निविधानेन निष्कामानामदंभानां पुण्यं स्यादित्यधिकारिविशेषणात् । विशेषतः सामान्यतश्च प्रायश्चित्त विधानात् । “यदर्वाचीनमेनो" भ्रूणहत्यायास्तन्माम्च्चत इति । तरति ब्रह्महत्यामिति च सर्व प्रायश्चित्त विधानात ब्रह्मानुभवाभावे सोमगतिरेव। सूत्रस्थ तु शब्द, पूर्वपक्ष -' खण्डन करता है । शास्त्र विहित कर्म के विपरीत कर्म करने वाले नर्क में यम के समक्ष सुख दुःख का अनुभव कर, चन्द्रम-सी गति प्राप्त कर पुनः लौटते हैं । उनका जाना आना अनुभवानुसार ही होता है। उन लोगों की गति का, शास्त्र विहित कर्म करने वालों से भिन्न वर्णन मिलता है। वेद में प्रथम, दो प्रकार की गति का उल्लेख है, सकाम गति और निष्काम गति । अनंत कामनाओं के अनुसार विविध उपासनाओं के फलस्वरूप सकाम गति अनंत प्रकार की होती है [जिस देवता की उपासना की जाती है, तदनुनार लोक की प्राप्ति होती है] निष्काम, ज्ञानरहित गति है, उसके दो भेद हैं, वैदिक और गृह्यस्मार्त । गृह्यस्मार्त गति में यम लोक जाना होता है। श्रौत में सोमभाव प्राप्ति होती है । उसमें त्रेताग्नि का विधान होता है। निष्काम गति वंभरहित जीवों की होती है, अधिकारी विशेष को इसमें पुण्यर्लोक प्राप्त होता है । इसमें, विशेष और सामान्य दो प्रकार के प्रायश्चित का विधान है। विशेष प्रायश्चित का विधान “यदर्वाचीनमेनो' इत्यादि श्रुति में दिया गया है, जिसमें सूणहत्या से मुक्ति बतलाई गई है।" तरति ब्रह्महत्याम्' इत्यादि श्रुति में सामान्य प्रायाश्चित्त का विधान दिया गया है। ब्रह्मानुभव के अभाव में सोमगति होती है। पूर्वजन्मधर्मस्य चित्तशुद्धावुपयोगः । तदानीन्तनस्य गंगास्नानादेः श्रोतांगत्वम् । अतः पापस्याभावात पुण्यस्योपक्षीणत्वात् तस्य पंचाग्नि प्रकार एव । ज्ञानस्योपयोगिजन्मनि पापसंश्लेषाभावोपायमंग्रवक्ष्यति । पितृमेध प्रथमाहुतिमंत्रस्तु मंत्रत्वाच्चमसवन्न गति नियामकः । ताग्नि विद्यारहितानां पुण्यपापोपभोगो यम एव । “वैवस्वते विविच्यन्ते यमे राजनि ते जनाः । ये चेह सत्येनेच्छंो य उचाऽ नृतवादिनः । इति, यमगतेः पंचाग्निविद्यायाश्चैपा व्यवस्था । चित्तशुद्धिभावाऽभावाम्यां वा अवश्यं काण्डद्वय व्यवस्था । एकस्यैतद वक्तव्यम् । सकामनिष्काम भेदो वा वेदान्तिनामपि पापाथ यंमापेक्षणात सा गतिवकव्य व, तस्मान्न सर्वेषां सोमगतिः।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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