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प्रकाशकीय
अनन्त श्री जगद्गुरु निम्बार्काचार्य गोस्वामी राधाकृष्ण जी महाराज की छत्रछाया में हमने पूज्य गोस्वामो ललित कृष्ण जी महाराज के ब्रह्मसूत्र भाष्यों के प्रकाशन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की । भारत में प्रायः सभी विद्वानों वैष्णवाचार्यों और मनीषियों ने हमारे प्रकाशित भाष्यों की सराहना और अभिवंदना की । सभी वैष्णव संप्रदायों के श्रीमन्तों ने भी प्रकाशन में मुक्तहस्त होकर आर्थिक सेवा की, इससे हम अपने को उपकृत अनुभव करते हैं ।
महाप्रभु श्री बल्लभाचार्य जी का अरणुभाष्ण, मुद्रित तो बहुत पहिले ही हो चुका था पर कुछ व्यवधानोंवश प्रकाश में नहीं आ सका । सम्भवतः आचार्य चरण की हो वैसी इच्छा थी, वे उसे अपनी पंचशताब्दी के शुभावसर पर ही भक्तों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते थे । गोलोकवासी सेठ गोविन्द दास जी ने अणुभाष्य प्रकाशन के लिए अपने गोपाल लाल न्यास से सेवा प्रदान कर मुद्रण का श्री गणेश करा दिया था । उसकी पूर्ति स्वनाम धन्य श्री जय दयाल जी डालमिया के द्वारा ही सम्पन्न होनी थी, दोनों ही भक्तों पर महाप्रभु जी कृपा करना चाहते थे, अतः विलम्ब होना स्वाभाविक ही था । आचार्य कृपा प्राप्त इन महानुभावों को हम धन्यवाद देने के अधिकारी नहीं हैं । अभिनन्दन करने में ही इनकी शोभा है ।
परमश्रद्धेय गोस्वामी दीक्षित जी का प्रसाद हमारे पास उनके उपस्थित काल से ही सुरक्षित है जिसे हम उनके तिरोभाव के उपरान्त भक्तों को दे रहे हैं, इसका हमें हार्दिक कष्ट है, उनके सूयोग्य सुपुत्र जो उनकी ही प्रतिच्छवि है, उन सौम्य आचार्य गोस्वामी श्याम मनोहर जी महाराज के श्री चरणों में हम सश्रृद्ध नमन करते हैं ।
अन्त में हम परमभक्ता वैष्णवी श्रीमती रत्नाकुमारी जी को धन्यवाद देना नहीं भूल सकते, जिन्होंने अपने मौहार्द से इस अलम्य निधि को आपके हाथों में समर्पित किया ।
पूर्ववत् सभी विद्वान और वैष्णव इसे श्रद्धापूर्वक सोन्साह ग्रहण करेंगे ऐसा हमारा विश्वास है ।
श्री महाप्रभु पञ्चशताब्दी
विनीत मुनिलाल
( भगवानदास मुन्नीलाल, बाँदा)