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________________ ३०८ है। उक्त मन्त्र से जीव के ब्रह्म भाव की जानकारी होती हैं, 'ब्रह्म, जीव में निहित' भी तो है । "नौह यद्वतः" इत्यादि भिन्न प्रश्नोत्तर हैं। दोनों बचनों में विधि पूर्वक ब्रह्मविद्या गुप्त है । "स यत्रायँ शारीर आत्मा" इत्यादि में ब्रह्म सम्बन्धी चर्चा उत्क्रमण श्रुति करती है तथा "चक्षुषोवा मूर्नोवा" इत्यादि से जीव के परलोक विहार की चर्चा करते हुए विहार के साधक प्राणों का निर्गमन बतलाती है। इस प्रकार मुक्त और अमुवत सम्बन्धी व्यवस्था करने से अग्न्यादिभाव श्रुति, उत्क्रमश्रुति की बाधिका नहीं होती । अन्यत्र सिद्ध धर्म को अन्यत्र अवस्था साम्य से जोड़ने से वह भाक्त हो जाता है। प्राणोत्क्रमण होता है, जीव उससे संसक्त होकर जाता है, यही निश्चित बात है। प्रथमेश्रवणादितिचेन्न ता एव हयुपपत्तेः ॥३॥१॥५॥ किंचिदाशंक्य परिहरति “असौवा व लोको गौतमाग्निः' इत्यत्र "देवाः श्रद्धां जुह्वति श्रुतेरापो न सँकीर्तिताः । अपांहि पंचम्यामाहुती पुरुषवचनम् । श्रद्धा मनो धर्मः, स कथं हूयत इति येन्न । मनसा सह भविष्यति । तथाप्यरु णान्यायेन धर्ममुख्यत्वम् । तर्हि कथं प्रश्नोपसंहारौ परोक्षवादाद् भविष्यति, चमसवत् "श्रद्धावा आप इति श्रुतेः शुद्ध हेतुत्वसाभ्यात् । "चन्द्रमा मनसो जातः" इति श्रुतिश्चेत्येवं पराभविष्यति तस्मात् प्रथमा हुतावपामश्रवणान्न ताभिः संपरिवक्तो गच्छतीति चेन्न त। एव आप एव श्रद्धा शब्देनोच्यते । हियुक्तोऽयमर्थः । यथा कर्मकांडे आपः श्रद्धाशब्देनोच्यन्ते तथा प्रकृतेऽपि । परं नोपचारः, उपपत्तेः उपक्रमोपसंहारयोर्दलीयस्त्वात् । ननु मध्ये श्रुतेन श्रत्ताशब्देनोपक्रमोपसंहारावन्यथावन्यथाकर्तुं युक्तौ । श्रद्धासहभावः संस्कारेण संस्कृतेषु भूतेषु सिद्धः । तेन मनः स्थाने आप एव वाच्याः । - कुछ आशंका करते हुए परिहार करते हैं, कहते हैं कि "असौवा व लोको" "इत्यदि श्रुति में तो "देव-श्रद्धां जुह्वति" कहा गया है, जल का तो नाम भी नहीं हैं । जल ही पांचवी आहुति में पुरुष नाम वाला होता है, ऐसा प्रमाण है जो ठीक भी है, पर ऊपर की श्रुति में श्रद्धा की आहुति कैसे हो सकती है ? ऐसी शंका उचित नहीं है, श्रद्धा की आहुति का तात्पर्य है, मनोयोग से दी गई आहुति । जैसे कि "अरुणा सोमंक्रीणाति" इत्यादि ज्योतिष्ष्टोम प्रकरणीय वाक्य में अरुणिमा गुण द्योतक है वैसे ही श्रद्धा शब्द में धर्म मुख्यता है। इस पर पुनः शंका करते हैं कि यदि श्रद्धा पद मनोयोग का
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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