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________________ ३०२ सिद्ध विषयाव धृतिस्ततः । अंतरंग विचारेण गुणानामुपसंहृतिः, बहिरंग विचारेण कर्मणामिति सा द्विधा । तस्मादधिकारिणो जन्म निर्द्धारः । तदनु तस्य ब्रह्मभावयोग्यता, ततो गुणोपसंहारः ततोऽङ्कविचार इति । तत्र प्रथमपादे जीवस्य ब्रह्मज्ञानीपथिकं जन्म विचार्यते । 3 प्रथम और दूसरे अध्याय में उपनिषदों के समन्वय और अविरोध की सिद्धि की गई, इस तीतरे अध्याय में उपनिषदों की बोधकता कर विचार करते हैं । उपनिषदों के वाक्य प्रकरण, शाखा में भिन्न भिन्न विद्याओं का उपदेश ह अथवा सब मिलकर एक ही विद्या का समर्थन कर रहे हैं, इस पर विचार किया जा रहा है । इसमें सर्व प्रथम यह विचार किया गया कि श्रवण मनन निदिध्यासन आदि साधनों के साथ शास्त्र चिन्तन करने से जन्म कर्म के बन्धन मुक्त होत हैं अथवा केवल ज्ञान योग से ही मुक्त हो जाते हैं द्वितीय पाद में, शास्त्र विचार पूर्वक भक्तिसाधना से ब्रह्मभावाप्ति योग्यता का वर्णन किया गया है । तृतीय पाद में, अधिकार का निर्णय हो जाने पर विषय की अवधृति बतलाई गई है । अंतरंग विचार करने से गुणों के उपसंहार होने पर तथा बहिरंग विचार से कर्म के उपसंहार होने पर वह अवधृति दो प्रकार से होती है । इस अधिकारी के जन्म at farरण, उसकी ब्रह्मभाव योग्यता, गुणों का उपसंहार और अंश का विचार किया गया है । प्रथमपाद में जीव के ब्रह्मज्ञान के उपयोगी जन्म पर विचार करते हैं । तत्र पूर्व जन्मनि निष्काम यज्ञ कर्त्तुज्ञान रहितस्य मरणे ज्ञाना भावेन यज्ञाभिव्यक्त्यभावाद भूतसंस्कारक एव यज्ञोजात इति निष्कामत्वाच्च तदधिकारिदेवाधीनान्येव भूतानि इति ते देवास्तत्र तत्र हुत्वा तस्य शरीरं संपादयन्ति इति पंचभ्यामाहुतावापः पुरुष वचसो भवंति ” इति श्रुतिः । तत्र जीवेन्द्रियाणां होमाभावेनाशुद्धिभाशंक्य तेषामपि होमं वक्तुमिदमधिकरणमारभते । न च पंचाहुतयो धूममार्ग एव तत्र गमनागमनयोर्बहुविशेष श्रवणात् । ‘“तद् य इत्थं बिदुर्ये चेमे श्रद्धा तप इत्युपासते, ते चषभमिसंभवतीति तज्ज्ञानवतोऽपि यत्राचिः प्राप्तिस्तत्र तथा देवहुतानां कथं सा न स्यात् । ज्ञानार्थमेव च तथोत्पत्तेः । पुनरावृत्तिः परंतुल्या । अथवा निष्काम एव धूममार्गः ।" योगी प्राप्य निवर्तते" इति स्मरणात् । भोगार्थ मेव धूमादि लोकाः । निष्पत्तिस्तु
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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