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________________ २६५ अतिदेशेन प्राप्तमप्यणुत्वं पंचधात्मा विभज्येति बचनात संदिग्धं पुनविधीयते, आसन्योऽप्यणुः । चकारात् पूर्वोक्तसर्वसमुच्चय :। सारे शरीर प्रदेश में व्याप्त होते हुए भी प्राण अणु है "पंचधात्मानं विभज्य" इत्यादि बचन से उसके विभुत्व का संदेह होने पर ऐसा ही निर्णय करते हैं किव्याप्त होने पर भी वह अणु है। उत्क्रांति आदि सभी अर्हतायें इसमें हैं, यही सूत्रस्थ चकार का तात्पर्य है। ज्योतिराद्यधिष्ठानं तु तदामननात् ।२।४।१४॥ वागादीनां देवताधिष्ठानवतांप्रवतिः, स्वत एव वा, जीवाधिष्ठान व्रह्यप्रेरणयोर्विद्यमानत्वादिति संशयः । विशेषकार्याभावान्न देवताऽपेक्षेति पूर्वपक्षं निरोकरोति तु शब्दः वागादीनां ज्योतिरादि अग्न्यादिरधिष्ठानमवश्यमंगीकर्तब्यम्, कुतः ? तदामननात् तथा आन्मायते "अग्निर्वाग्भूत्वा मुखं प्राविशद्" इत्यादि । वागादि इन्द्रियों की प्रवृत्ति, उनमें अधिष्ठित अभिमानी देवताओं के द्वारा होती है या स्वतः होती है ? ऐसा संशय होता है, क्योकि जीव की प्रवृत्ति तो जीव में अधिष्ठित ब्रह्म की प्रेरणा से होती है। इस पर पूर्वपक्ष का कथन है कि इन्द्रियों के कोई विशेष कार्य तो होते नहीं इसलिए देवताओं की कोई अपेक्षा नहीं होती। इसका निराकरण सूत्रकार तु शब्द के प्रयोग से करते हैं, वे कहते हैं कि वाग् आदि की ज्योति आदि (अग्नि आदि) अधिष्ठावृता अवश्य स्वीकारनी पड़ेगी, “अग्निर्वाग्भूत्वा मुखं प्राविशद्" इत्यादि श्रुति से निश्चित होता है । अयमर्थः-"योऽध्यात्मिकोऽयं पुरुषः सोऽसावेवाधिदैविकः । यस्तत्रोभयविच्छेदः स स्मृतो ह्याधिभौतिकः ॥" इत्याध्यात्मकादीनां स्वरूपं वागादयश्चानुरूपा नित्याः । तत्र यदि त्रैविध्यं न कल्प्येत् तदैकस्मिन्नेव शरीरे उपक्षीणं शरीरान्तरे न भवेत् । कल्प्यमानेतु अग्निर्देवता रूपोऽनेकरूप भवन समर्थों वागरूपोभूत्वा सर्वत्र प्रविष्ट इति संगच्छते । ते चाग्न्यादयश्चेतना भगवदंशास्तिरोहितानन्दाः सामर्थ्ययुक्ता इति कार्यवशादवगम्यते। कहने का तात्पर्य यह है कि-"जो आध्यात्मिक पुरुष है वहीं आधिदैविक की भी स्थिति है, इन दोनों का विच्छेद हो जाने पर, उसे आधिभौतिक कहा जाता है।" इसलिए आध्यात्मिक आदि का स्वरूप वाग् आदि के अनुरूप नित्य है
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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