SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६३ तदुभयमपि न, कुतः ?पृथगुपदेशात्--"एतस्माज्जायते प्राणो मन: सर्वेन्द्रियाणि च"-"रवं वायुयोतिरापः पृथ्वी विश्वस्यधारिणी" इति प्राणवाय्वोः पृथगुपदेशात् । बृत्तिवृत्तिमतोरभेदेन ततोऽपि पृथगुपदेशाच्च । ____ अब प्रश्न होता है कि-मुख्य प्राण, वायु का ही दूसरा नाम है, या इन्द्रियों की क्रिया का नाम प्राण है ? श्रुति तो ऐसी है कि-"जो प्राण है वही वायु है" यह वायु पांच प्रकार का है-प्राण, अपान उदान, व्यान और समान । इन्द्रियों की सामान्य वृत्ति प्राणादि पांच रूपों से है इसलिए वायु के पांच प्रकार हैं। इस लिए इनका प्राणों में अन्तर्भाव किया गया है। वस्तुतः न तो प्राण, वायु है और न इन्द्रियों की क्रिया का नाम प्राण है। प्राण आदि का स्पष्टतः भिन्न रूप से उल्लेख किया गया है---"इससे प्राण और इन्द्रियाँ हुई" आकाश, वायु, ज्योति, जल और पृथिवी विश्व धारक हैं" इत्यादि में, प्राण और वायु का भिन्न रूप से वर्णन किया गया है। यदि वृत्ति और वृत्तिमान का अभेद मानें तो भी, भिन्न उल्लेख से इनकी भिन्नता ही निश्चित होती है। चक्ष रादिवत्त तत्सहशिष्ट्यादिभ्यः ।२।४।१०॥ स प्राणः स्वतंत्रः, परतंत्रो वेति विचारे स्वतंत्र इति तावत् प्राप्तम् । सुप्तेषु वागादिषु प्राण एको मृत्युनानाप्तः प्राणः संवर्गों वागादीन् संवृक्त प्राण इतरान प्राणान् रक्षति मातेव पुत्रान्" इति । इमामांशंका निराकरोति तु शब्दः । चक्षुरादिव दयमपि प्राणोऽस्वतंत्र : मुख्यतयो भगवदधीनः, व्यवहारे जीवाधीनः, कुतः ? तत्सहशिष्ट्यादिभ्यः, चक्षुरादिवत् सह शासनात् । इन्द्रियजयवत प्राणजयस्यापि दृष्टत्वात् । आदि गब्देन जडत्वादयः । वह मुख्य प्राण स्वतंत्र है या परतंत्र ? विचारने पर तो स्वतंत्र ही प्रतीत होता है, श्रुति भी ऐसा हो कहती है, “वाग आदि के सो जाने पर एक मात्र प्राण ही जागता है, प्राण संवर्ग वाग आदि सभी एक साथ हैं, मुख्य प्राण इन प्राणों की रक्षा माता के समान करता है" इत्यादि । इस संशय का निवारण तु शब्द से करते हैं, कहत हैं कि चक्षु आदि की तरह यह प्राण भी परतंत्र है, मुख्य रूप से तो यह भगवदाधीन है, व्यवहार में जीवाधीन । चक्षुरादि की तरह साथ साथ इसके शासन की भी चर्चा की गई है । इन्द्रिय जय की तरह इसका जय भी लोक में किया जाता है। आदि शब्द से सूत्र में इसके संयमन की ओर इंगन किया गया है।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy