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________________ २७८ तस्यैव गांधर्वादिलोकेषु "यद् यद् कामयते तद्तत् भवति" इति विहार उपदिष्टः । ततश्च कर्तृत्व भोक्तत्वयोः "साधुकारी साधुभवति" इति सामानाधिकरण श्रवणाज्जीव एव कर्ता। "जो जो कामना करता है, वो वो होता है" इत्यादि में गांधर्व आदि लोकों में,जीव के विहार का ही वर्णन किया गया है तथा "साधुकर्म करने काला साधु होता है" इत्यादि में कर्तृत्व और भोक्त त्य' का समानाधिकरण दिखलाया गया है, इसलिए जीव ही कर्ता है। उपादानात् ।।३।३॥ "तषां प्राणानां विज्ञानेन विज्ञानमादाय" इति जीवेन सर्वेषां विज्ञानमुपादीयते । तस्मादिन्द्रियादीनां करणत्वमेव । स्वात्रन्न्यादस्यैव कर्तृत्वम् । "तदेषां प्राणाना" इत्यादि में बतलाया गया है कि जीव से ही समस्त इन्द्रियाँ विज्ञान प्राप्त करती हैं, इससे इन्द्रियों का करणत्व निश्चित होता है, तथा जीव का हो स्वतन्त्र रुप से कर्तृत्व सिद्ध होता है। यस्तु मन्यते बुद्धिसंबंधीज्जीवस्य कर्तृत्वमिति । स प्रष्टकः किं बुद्धिकर्तृत्वं जीवे समायाति ? अथवा जीवगतमेव कर्तृत्वं बुद्धि संबंधादुद्गच्छति ? अथवा शशविषाणायितमेव कर्तृत्वं संबंधेसमायाति ? नाद्यः जडत्वात् अनंगीकारात् पूर्व निराकृतत्वाच्च । द्वितीये त्विष्टापत्तिः, उपादान विरोधश्च । तृतीये शास्त्र विरोधः ब्रह्मणिसिद्धत्वाच्च, असत् कार्यस्य निराकृतत्वात् । सर्वविप्लवस्तु माध्यमिकवठ्ठपेक्ष्यः। जो लोग बुद्धि के संबंध से जीव का कर्तृत्व मानते हैं उनसे पूछना चाहिए कि-बुद्धि के कर्तृत्व से जीव कार्य करता है ? अथवा जीव में कर्तृत्व है बुद्धि संबंध से वह जागृत होता है ? अथवा शशशृङ्ग की तरह बुद्धि के संबंध से वह कर्तृत्व अकस्मात् निकल पड़ता है ? बुद्धि का कर्तृत्व तो हो नहीं सकता ख्यों कि वह जड है, शास्त्र लड़ को कर्ता नहीं मानता, उसका पहिले निराकरण भी हो चुका है। बुद्धि के संबंध में कर्तृत्व जागृत होता हो सो भी नहीं है वैसा होने से इष्टपत्ति और उपादान विरोध होगा। शशशृङ्ग की तरह मानने से शास्त्र की विरुद्धता होगी, असत् कार्यावाद का निराकरण तो पहिले हो चुका । ये मत तो माध्यमिक बौद्धों की तरह उपेक्ष्य है। - व्यपदेशाच्च कियायां न चेन्निर्देशविपर्ययः ।।३।३६॥
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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