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________________ २२७ किमहं तेन कुर्याम्' इति विरक्ति मुक्तवा “यदेव भगवान वेद ततेव मे ब्रूहि" इति पृष्ट तामभिमुखीकृत्य “न वारे पत्युः कामाय' इत्यादिना अमृत त्वाय ज्ञानमुपदिशति । षष्ठे पुनरुपसंहारे अपि "एतावदरे खल्वमृतवत्म्" इति होक्त्वा याच वल्क्यः प्रववाजेति तत्र जीवस्य प्रकरणित्वं ब्रह्म णोवा ? इति संशयः। पुनः जीव ब्रह्म वाद से प्रकृति कारण वाद की संका करते हुए परिहार करते हैं । वृहदारण्यक के चौथे मोर छठे अध्याय के याज्ञवल्क्य मैत्रेयी संवाद में “जिससे मैं मृत न होजाऊँ ऐसा कोई उपाय बतलायें जिसे मैं करू" ऐसा विरक्ति भाव दिखलाकर "भगवन् ! आप जो जानते हों सो बतलावें" ऐसा प्रश्न करने पर उससे “न वारे पत्युः कामाय" इत्यादि से अमृतत्व ज्ञान कर उपदेश किया षष्ठ अध्याय के उपसंहार में भी “अमृतत्व केवल इतना ही है" इत्यादि उपदेश देकर याज्ञवल्क्य ने संन्यास ले लिया। इस पर संशय होता है कि ये प्रकरण जीव सम्बधी है या ब्रह्म संबंधी? तत्रात्मनः प्रियत्वं स्वप्रतीत्या पुत्राधपेक्षया बोधयन जीव मेवोपक्रमे आत्मत्वेन वदति । तदनु तत्र दर्शनादि विद्यत्ते । "तेन सर्व विदितम्" इति फलमाह । तत्र कथमात्म ज्ञानेन सर्वज्ञान मित्याकांक्षायां "ह्म तं परादात्" इत्यादिना "इदं सर्वं यदयमात्मा" इत्यन्तेन तस्यैव सर्वत्वमाह । उस स्थान पर, पुत्रादि को अपेक्षा से स्व प्रतीति भाव से आत्मा की प्रियता बतलाते हुए, प्रात्मा रूप से जीव का ही निर्देश प्रतीत होता है। उसी के दर्शनादि का भी विधाव किया गया है। "तेन सर्व विदितम्" से प्रात्मसाक्षत्कार का फल कहा गया है आत्मज्ञान से समस्त का ज्ञान कैसे संभव है ? ऐसी आकांशा होने पर "इदं सर्वं यदयमात्मा" इत्यादि से उसी मात्मा का ही सर्वत्व कहा गया है । तदनु कघमस्मिन् संयाते प्रात्मज्ञानं भवति ? इत्याकांक्षायां दुंदुभ्यादि दृष्टांत त्रयमाह । परंपरया ब्राह्माभ्यन्तर भेदेन यथा महाकोलाहले दुन्दुभेहन्यमानस्य शब्दो गृहीतो भवति । तत्र करणं दुन्दुभिदर्शनं दुन्दुभ्याधात दर्शनं वा । अनुमान द्वारा चित्ते तत्र निविष्ट तत्साक्षात्कारो भवति इति तथा आत्मनो बोधक कार्यानु संघाने तत्साक्षात्कारो भवति इति । तत्र कथं सर्वत्वम् ? इत्याकांक्षायाम् तत एवोत्पन्नं सर्वं नाम रूपात्मक तस्मिन्नेव
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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