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________________ २२४ ब्रह्मण्येवलयः तस्मादेव सर्व मिति ज्ञातव्यम् । प्राणात्मशब्द वाच्यवंतु पूर्व मेव सिद्धम् । तस्मान्न जीवाधिष्ठिता प्रकृतिः कारणम् । उक्त मत पर कहते हैं कि-"एतेषां पुरुषाणां कर्ता यस्य चैतत् कर्म" इस उपक्रम वाक्य में एतत् शब्द से जगत का तथा पुरुष शब्द से जीव का उल्लेख किया गया है, इस प्रकार दोनों का कर्ता एक को ही बतलाया गया है । जड़ जीवात्मक सारा जयत् ब्रह्म कर्त्तक ही है ऐमा पहिले भी निश्चित हो चुका है उसी प्रकार इस प्रकरण में भी ब्रह्म परक मानना ही उचित है, अन्यथा समस्त श्रुतियों में उलट फेर हो जावेगा तथा यह कल्पना भी अवैदिक होगी । सुषुप्तावस्था में भी ब्रह्म में ही लय, उससे ही समस्त की सृष्टि जाननी चाहिए । परमात्मा की प्राणात्म शब्द वाच्यता तो पहिले ही निश्चित हो चुकी है। इसलिए जीवाधिष्ठिता प्रकृति कारण नहीं है। जीव मुख्य प्राणलिंगादिति चेत् तद् व्याख्यातम् ।१।४।१०॥ किंचिदाशंक्य परिहरति । नन्वत्र जीव एव प्रकांतः "क्वैष एतद् बालाके पुरुषोऽशयिष्ट" इति । ब्रह्म त्वद्याषि न सिद्धम् "एतादृशंनतादृशम्" इति । अतः शयनोत्थान लक्षण जीव धर्म दर्शनात् तस्यैव ब्रह्मत्वं जगत् कर्त्त त्वं च । तत् स्वतोऽनुपपन्न प्रकृती फलिष्यति । अथवा मुख्य प्राणलिंगमप्यत्रास्ति । "प्राण एवैकधा भवति" इति सुषुप्तो तस्यैव वृत्तिरुपलभ्यते । विद्यमानादेव सर्वोत्पत्तिः प्रलयो । स च प्रकृत्यंशोऽतो जडादेव प्रधानात् सृष्टावपि सर्वोत्पत्तिः अतोऽस्मात् प्रकरणाज्जीव द्वारा साक्षाद् वा प्रकृतेः कारणत्वम् । कुछ शंका कर, परिहार करते हैं । "क्वैष एतद् बालाके !" इत्यादि में जीव का ही प्रकरण है। "एतादृशं नैतादृशं" इत्यादि से भी ब्रह्म की सिद्धि नहीं हो सकती। सोना और उठना ये जीव के ही धर्म दीखते हैं, इसलिए उसे ही ब्रह्म रूप से बतलाया गया है, यह सृष्टि भी उसी की है। वह जीव स्वतः तो कार्य करने में क्षम नहीं है इसलिए यह सृष्टि, प्रकृति कत क ही है । अथवा यहाँ मुख्य प्राण का भी वर्णन हो सकता है "प्राण एवैकधा भवति" इत्यादि से सुषुप्ति में उसी की वृत्ति का वर्णन किया गया है । सुषुप्ति में जव वह रहता है तो सृष्टि और प्रलय भी उसी से हैं, यही मानना होगा। वह प्रकृति का ही श अंहै, इसलिए जड़ प्रधान से ही
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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