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________________ २०२ भगवन्निर्गमने हि प्रारणानां निर्गमनात्तस्य चेच्छाधीनत्वात् तदभावे इन्द्रियाणि सुषुप्तौ तत्रैव समवलीयन्ते - ब्रह्मव सन् कूटस्थः सन् । अपि समुच्चये । सह स्थिते जीवे ब्रह्मादिर्भवतीत्यर्थः । जीवे ब्रह्माविर्भाव न संगत इति तत्प्रतिपादनार्थं श्लोकः । जीवोपदेश प्रकरणाभावेन सिद्धवद् वचनान्न जीवन्मुक्तावस्था । नाप्यसम्प्रज्ञात समाधिः, मतान्तरत्वात् । ब्रह्मप्रकरणत्वान्न जीवस्य सद्योमुक्तिः फलम् । उत्क्रमण एव ब्राह्मण स्याप्युक्तत्वात् । तद्यथेति सुषुप्तिशरीरम्, अनस्थिक इत्यादि, मम्र डित्यतमुपसंहारः भगवान् के निर्गमन पर प्राणों का निर्गमन होता है क्यों कि वे उसी की इच्छा के अधीन होते हैं, उसके प्रभाव में इन्द्रियाँ सुषुप्ति में वहीं लीन रहती हैं, वह कूटम्भ और ब्रह्म होकर ही लीन होती हैं । अर्थात् साथ रहने से जीव में ग्राविर्भाव होता है जीव में ब्रह्माविर्भाव संगत नहीं है, इसका प्रतिपादन श्लोक से किया गया है। यह प्रकरण जीवो पदेश का नहीं है, भगवत् सिद्ध गुणों का ही उल्लेख है इसलिए यह जीवन मुक्ति अवस्था भी नहीं है और न असंप्रज्ञात समाधि ही है । ब्रह्म प्रकरण होने से, जीव की सद्योमुक्ति का ही वर्णन हो यह भी नही कह सकते शारीर ब्राह्मण के मतानुसार उत्क्ररण ही हो सकता है । " तद्यथा" । सुषुप्त शरीर तथा "अनस्थिक" इत्यादि से " सम्राड्' तक उपसंहार किया गया है । श्लोका अत्र त्र्योदश सर्वनिर्द्धारिकाः, आद्यो ब्रह्मविद् प्रनेवं विदोनिन्दा | " तदेव मन्त" इति बुद्धिमतां वचनम् । 'आत्मानम्" इति वैराग्यम् । "यस्यानुवृत्तिरिति" नवभिर्ब्रह्मस्तुतिः । तद् विज्ञानं च । पुनरेतदेव स्पष्ट तयोपदिशति, " सवा श्रयमात्मा" इत्यादि । " श्रभयं वैजनक प्राप्तोऽमी त्यन्नम् । काण्वानां क्वचिद् पाठभेतेऽप्ययमेवार्थः प्रकरणे जीवो वाच्यः इति प्राप्ते | उक्त प्रकरण में विषय के निर्द्धारक तेरह श्लोक हैं पहिले श्लोक में ब्रह्मविद् की गति का वर्णन है । "एष इति" में सुषुप्तावस्था में पंचविध नाडियों का विचार है । " श्रन्वंतम्" इत्यादि श्लोकों से ब्रह्मतत्त्व न जानने वाले की निन्दा है " तदेवसन्त" से बुद्धिमानों की महत्ता कही गई
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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