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________________ १६७ पहिले ही कही गई होती, "महं ब्रह्मास्मि" ऐसा ज्ञान होने के बाद न कही जाती । यह श्रुति स्पष्टतः ब्रह्म और जीव का भेद बतला रही है । ब्रह्मत्व का ज्ञान जीव की सर्वज्ञता का द्योतक है, यदि वह सर्वज्ञ नहीं हो पाता तो उसे अपने ब्रह्मत्व का अनुसंधान नहीं हो सकता | भगववाचक शब्दों में सर्वेशता एक विशेष श्रेष्ठ गुरण है, जो कि जीवात्मा में भगवत् कृपा से ही प्राता है, इस गुरण से जीव का भी महात्म्य होता है । इस प्रकार के लिंग से भी गति और शब्द को ब्रह्मविषयता निश्चित होती है । " उसे जान कर मृत्यु का अतिक्रमण करता है" इसके अतिरिक्त जानने का कोई श्रौर मार्ग नहीं है" इत्यादि श्रुति भी, ब्रह्मत्व रूप से ज्ञान होने की बात ही कहती है मोक्ष की बात नहीं कहती (जीवन्मुक्ति वाली कल्पना भी कोरी कल्पना ही है ) इन श्रुतियों में बतलाया गया है कि ब्रह्म का ही आत्मा रूप से ज्ञान होता है । इससे निश्चित होता है, कि दहर परमात्मा ही है 4 घृतेश्व महिम्नोऽस्यास्मिन्नुपलब्धेः ११।३।१६॥ अपरं हेतुमाह, घृते: “प्रथ य श्रात्मा स सेतुविषृरेषां लोकानामसंभेदाय" इति । न हि सर्वलोक विधारकत्वं ब्रह्मणोऽन्यस्य संभवति चकारात् सेतुत्वमपि । तद्द्न्वेष्टव्यम् तविजिज्ञासितव्यं इति लोक विधारणस्य महात्म्य रूपत्वात् तस्मैव कर्मत्वमित्याह महिम्न इति, महिमैष पुरुषस्य, न तु चासनदरूपेण तस्मिन् विद्यमानत्वम्, संसारिधर्मत्वेनामाहात्म्यरूपत्वात् । न चंविरुद्ध मुभयत्रैकस्यदर्शनमिति वाच्यम् । श्रस्यास्मिन्नुपलब्धेः अस्य एतादृशविरुद्ध धर्माश्रयमाहात्म्यस्यास्मिन् भगवत्येवोपलब्धेः । " ज्यायानाकाशाद्, यावान् वा श्रयमाकाश:, अणुः स्थूल" इति । यशोदादयश्च बहिस्थितमपि जगदन्तः प्रपश्यति । स त्वेताहमा की भवितुमर्हति । तस्माद् ब्रह्मवदहर अब परमात्मा के दहर होने में दूसरा हेतु धारण करने की शक्ति से भी उक्त बात को आत्मा है वह लोकों को पार करने वाला धारक सेतु विचारकत्व की क्षमता परमात्मा के अतिरिक्त किसी है । " उसे ही जानो उसे ही खोजो" इत्यादि, लोक बतलाते हैं, "भूतेः " अर्थात् सिद्धि होती है । "जो यह है" "ऐसी सर्वलोक और में संभव नहीं विधारण महात्म्य रूप
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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