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________________ एतं संयद्वाम इत्याचक्षते "एतं हि सर्वाणि वामान्यमिसंयंभि, एष उ एव वामनीरेष हि सर्वाणि वामानि नयति, एष उ एव भामनीरेष हि सर्वेषु लोकेषु भातीति" : वामानि कर्मफलानि, तेषामेव मनोहरत्वेन तदर्थ कर्म करणात् । कर्मफलयः कर्म फलदानं च यत् इति स्वर्गारवर्गफल दातृत्वमुक्तम् । सर्वलोकेषु भानं च, एष इति तमेवाक्षिपुरुषं निर्दिश्य स्थानादिव्यपदिश्यते न हि प्रतिबिम्बात्मनः स्थानादि व्यदेशः संभवति । ___इस अभिपुरुष को ही संयद्वाम कहा गया है-"इससे ही समस्त वामों की संगति होती है, यही वामनी है सभी वामनियों की प्राप्त कराता है, यही भामनी है, यही समस्त लोकों में प्रकाशित है" इत्यादि । वामानि अर्थात् कर्म फलों को वे कर्मफल उसी के लिए मनोहर होते हैं जो उन परमात्मा के लिए कर्म करते हैं । कर्मफल दान उन्हीं के द्वारा कहा गया जिससे स्वर्गापवर्ग फल दात्तता दिखलाई गई । समस्त लोकों में वही प्रकाशित हैं, उन्हें ही अक्षिपुरुष बतलाकर उनके स्थान विशेष का निर्देश किया गया है, प्रतिबिम्बात्मा के स्थान का उल्लेख कहीं भी नहीं है । इसलिए इसे प्रतिबिम्ब पुरुष का स्थान नहीं कह सकते । चकारादेतत्तुल्यवाक्यास्याप्ययमेवार्थः । इन्द्रविरोचन प्रजापति संवादे'प्रथयोऽयं भगवोऽप्सु परिव्यायत इत्यासुरम् न त् एषोऽक्षिणि पुरुषो दृश्यते इत्यादि तस्मादक्षिपुरुषो ब्रह्मव । सूत्र में च के प्रयोग से यह दिखलाते हैं कि उक्त वाक्य के तुल्य अन्यवाक्य का भी यही तात्पर्य है । इन्द्र विरोचन प्रजापति के संवाद में जैसा कि प्राता है-'हे भगवन ! यह जो जल में प्रतिबिम्ब दीखता है यह प्रासुर है, यह प्रक्षिपुरुष नहीं है" इसमें स्पष्टतः प्रतिबिम्वत्व का निराकरण है इससे निश्चित होता है कि अक्षिपुरुष ब्रह्म ही है। सुखविशिष्टाभिधानादेव ।१।२।१५।। ननु किमित निर्बन्धेन ब्रह्मवाक्यत्वम् संपाद्यते उपासना परत्वे को दोषः ? इत्याशंक्याह सुखविशिष्टाभिधानात् । “एतदमृतमभयमेतद् ब्रह्म' इति, यद्यत्रोपासना विधीयेत एष प्रात्मेति, तथा अमृतादि वचनं व्यर्थस्यात् । तद्धर्माणां पूर्वमेव प्राप्तत्वात् । तस्मादमृतमानन्दः, अभयंचित् ब्रह्मसत्, सच्चिदानंदात्मा इत्युक्त भवति । अत एष अक्षिपुरुषं निर्दिश्य सुखविशिष्ट
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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