SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८७ ६ अधिकरण ज्योतिश्चरणाभिधानात् ।१।१।२३॥ इदमामनंति, "अथ यदतः परो दिवो ज्योतिर्दीप्यते विश्वतः पृष्ठेषु सर्वतः पृष्ठेष्वनुत्तमेषूत्तमेषु लोकेषु, इदं तावद् यदिदमस्मिन्नन्तः पुरुषे ज्योतिः" इति । तत्र ज्योतिः शध्देन प्राकृतं ज्योतिराहोस्वित् ब्रह्म वेति संशयः । छांदोग्य का प्रवचन है कि--"घ लोक, विश्व तथा उत्तमाधम समस्त लोकों के ऊपर जो ज्योति है, वह पुरुषों की अन्तःस्थ ज्योति ही है।" इसमें संशय होता है कि यहाँ ज्योति शब्द से प्राकृत ज्योति का उल्लेख है, अथवा ब्रह्म का? - अत्रासाधारण ब्रह्म-धर्माभावात् पूर्वपक्षः । सिद्धान्ते तु चरणस्य ब्रह्मधर्मत्वमिति । "एतावानस्य महिमा अतो ज्यायांश्च पूरुषः । पादोऽस्य सर्वा भूतानि त्रिपादस्याऽमृतं दिवि" इति पूर्ववाक्यम् । “ग यत्री वा इदं सर्वभूतम् यदिदं किं च" इति गायत्रयाख्य ब्रह्मविद्यां वक्तुं तस्याः पाद चतुष्टयं प्रतिपाद्य ब्रह्मणश्चतुष्पादत्वमुक्तम् । पुरुषसूक्तेप्याश्रमचतुष्टयस्था जीवाः पादत्वेनोक्ताः । तथा प्रणव ब्रह्मविद्यायामप्यकारोकारमकारनादवाच्याश्चत्वारः पादा विश्वतैजसप्राज्ञतुरीया उक्ताः । तद् विष्णोः परमं पदमिति च । ब्रह्मपुच्छमिति च । सत्यकाम ब्राह्मणे तु स्पष्टा एव ब्रह्मणश्चत्वारः पादा निरूपिताः । अतः सच्चिदानन्दरूपस्य प्रत्येक समुदायाभ्यां चतूरूपत्वम् । तत्र केवलानां कार्यत्वमेव, चतुर्थपादस्य तु ब्रह्मत्वम् । उक्त संशय पर पूर्वपक्षी कहते हैं कि ज्योति कोई असाधारण धर्म नहीं है, जिससे उसे ब्रह्म सम्बन्धी माना जाय । सिद्धान्ती कहते हैं कि चरणरूप से यह ब्रह्म-धर्म ही है। "इसकी महिमा इतनी ही नहीं है, इससे भी श्रेष्ठ है, समस्त भूत समुदाय उसके एक चरण में व्याप्त है, उसके तीन चरण घ लोक में हैं" इत्यादि स्पष्ट उल्लेख है । "यह जो कुछ भी है वह सब कुछ गायत्री है" इत्यादि में गायत्री नामक ब्रह्मविद्या को बतलाने के लिए उसके चार चरणों का प्रति
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy