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________________ "आकाशस्तल्लिगात्" आकाशः परमात्मैव, कुतः ? तल्लिगात्, श्रुतिलिंगादयो नियामकत्वेन पूर्वतंत्रवदिहापि गृह्यन्ते । लिंगं श्रुति सामार्थ्य एकवाक्यताच सर्वासां ब्रह्मश्रतीनाम । अत्र ब्रह्मव जगत्कारणमिति निःसंदिग्धेषु सिद्धम् । सर्वशब्दवाच्यत्वं ब्रह्मण्येव । तत्र वाक्यार्थापेक्षया पदार्थस्य दुर्बलत्वात वाक्यार्थः सर्वगतित्वादिः,. तद वाक्यार्थान्यथाऽनुपपत्त्या प्रकाश पदार्थों ब्रह्मेति । सर्वशब्द वाच्यत्वाच्च न लक्षणा, मुख्यत्वाच्च । यावन् मुख्य परत्वं संभवति तावन्न कस्यापि वेदांतस्यापरब्रह्म-परत्वमिति मर्यादा । तस्मात् “यदेष आकाश आनंदो न स्यात्" इति वदत्राण्याकाशो ब्रह्म वेति सिद्धम् । - प्रकाश परमात्मा ही है, क्योंकि परमात्मा सम्बन्धी लिंगों का इस आकाश के लिए उल्लेख किया गया है । श्रुति लिंग आदि पूर्वमीमांसा वाला नियम यहां भी लागू होगा, जिससे प्रकरण आदि से, लिंग की महत्ता मानी जाएगी। समस्त ब्रह्मपरक श्रुतियों की, लिंग के अाधार पर एकवाक्यता हो जाती है, अतः निश्चित रूप से ब्रह्म ही जगत का कारण है। सभी शब्दों की वाच्यता भी ब्रह्म में ही निश्चित होती है । वाक्यार्थ की अपेक्षा पदार्थ दुर्बल होता है, इसलिए सर्वगतित्व आदि जो वाक्यार्थ है, उसके समक्ष आकाश पद का अर्थ 'भूताकाश' दुर्बल है, अतः आकाश पद का अर्थ ब्रह्म ही होगा । लक्षणा भी नहीं की जा सकती क्योंकि-मुख्यार्थ बाध में ही लक्षणा होती है, श्रुति के सभी शब्द ब्रह्म के लक्षण का ही द्योतन कर रहे हैं । जब तक मुख्य परत्व अर्थ संभव होता है तब तक कोई भी वेदांत-वाक्य अपर ब्रह्म की व्याख्या नहीं करता यह उसका विशेष नियम है । इसलिये “यदेष आकाश" इत्यादि कहने वाला वाक्य भी आकाश को ब्रह्म रूप से ही प्रस्तुत करत" है, यह निश्चित बात है। ८ अधिकरण अत एव प्राणः ।।१।२२।। "प्रस्तोतर्या देवता प्रस्तावमन्वायत्ते" त्युपक्रम्य श्रूयते-"कतमा सा देवता इति प्राण इति होवाच, सर्वाणि ह वा इमानि भूतानि प्राणमेवाभिसंविशंति प्राणमभ्युज्जिहते, सैषा देवता प्रस्तावमन्वायत्ता" इति । तत्र संशयः, आसन्यः प्राणो ब्रह्म वेति । पूर्वपक्षसिद्धान्ती पूर्ववदेवेत्यतिदिशति ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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