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________________ ५८ मनोमय, उससे विज्ञानमय अंतरंग है । अर्थात् जलस्वरूप अन्नरसमय, वायुरूप प्राणमय, तेजरूप मनोमय, प्राकाशरूप विज्ञानमय उत्तरोत्तर अंतरंग हैं। जो लोग मयट को विकारात्मक कहते हैं, वे अन्नमय प्रादि को विकारात्मक प्राकृत कहते हैं, अंतरंग में निहित अविद्याविमुक्त जीव को ही आनंदमय मानते हैं । यह मत निराकरणीय है । अग्रिमप्रपाठके भृगुणा अधीहि भगवो ब्रह्मति पृष्टो वरुणस्तदोत्तमाधिकाराभावात स्वयं ब्रह्मस्वरूपमनुक्त वा तफ्साधिकारातिशयक्रमण स्वयमेव ज्ञास्यतीति तदेव साधनं सर्वत्रोपदिष्टवान् “तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व" इति । ब्रह्मातिरिक्त न साधनेन न तज्ज्ञातुं शक्यमिति ज्ञापनाय "तपो ब्रह्म" इति सर्वत्रोक्तत्वात् । तथा च तपसा साधनेन ब्रह्मत्वेन ज्ञातानि रूपाणि प्राकृतानि इति विचारकेण न वक्तं शक्यमिति । तर्हि पुनर्बह्मविषयकप्रश्नसाधनोपदेशतत्करणपूर्वातिरिक्त ब्रह्मज्ञानानां परंपरा नोपपद्यते इति चेत्, मैवम्, भगवतो हि विभूतिरूपाण्यनंतानि, तत्र येन रूपेण यत् कार्य करोति तेन रूपेण समर्थोऽपि तदतिरिक्त न करोति, तथैव तल्लीला यतः । इसी प्रपाठक के अग्रिम प्रपाठक में भृगु के "अधीहि भगवो ब्रह्म" ऐसा पूछने पर, वरुण ने उसे उत्तम अधिकारी न मानते हुए स्वयं ब्रह्म का स्वरूप न बतलाकर 'तप के द्वारा अधिकारातिशय होता है प्रतः तुम तप करो, तुम्हें स्वयं ही ब्रह्म तत्त्व का ज्ञान हो जायगा, ऐसा तात्त्विक साधन का यह उपदेश दिया कि "तप से ब्रह्म को जानना चाहिए", तप के अतिरिक्त किसी अन्य साधन से ब्रह्म को जानना शक्य नहीं है, इसीलिए सब जगह कहा गया है कि तप ब्रह्म है, तप रूपी साधन से ज्ञात समस्त ब्रह्ममय वस्तुओं को प्राकृत कहना विचारशून्य है । यदि कहें कि ब्रह्मविषयक प्रश्न और साधन के उपदेश के प्रसंग से ज्ञात होता है कि जिस साधन का उपदेश किया गया है उसके अतिरिक्त ब्रह्मज्ञानों की परंपरा जाग्रत नहीं होती, सो बात ऐसी नहीं है। भगवान के अनंत विभूतिरूप हैं, जिस रूप से वे जो कार्य करते हैं, अन्य कार्य करने की सामर्थ्य होते हुए भी उस रूप से वे अन्य कार्य नहीं करते, उनकी लीला का ऐसा ही नियम है। .. तथा चान्नमयादिरूपः क्ष द्राण्येव फलानि ददाति, ' होनाधिकारिणां तावतैवाकांक्षानिवृत्तिर्भवति । एवं सति यादृशेनाधिकारेणानिमयस्वरूपज्ञानं
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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