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________________ ५० जीवस्य साधनफले निरूपयन्त्याः श्र ुतेर्जीव परत्वमेव स्यान ब्रह्मपरत्वम् । कर्म ब्रह्मणोरपि जीवशेषत्वं नापेयात् । अथवा - " वह ऐसे रमण करने में समर्थ नहीं हुआ, उसने दूसरे साथी की इच्छा की, वह इतना ही नहीं है" इत्यादि तथा " एष उ एव" इत्यादि श्र ुति से ज्ञात होता है कि वह परमात्मा फलानुरूप साधनों को करवा कर तदनुसार फल प्रदान कर, स्वयमेव क्रीडा करने के लिए जगत रूप से विर्भूत होकर क्रीडा करता है, ऐसा ही दोनों काण्डों का प्रतिपादन है । ऐसा न मानेंगे तो, जीव के साधन और फल का निरूपण करने वाली श्रतियाँ जीव परक ही सिद्ध होंगी, ब्रह्म परक नहीं । कर्म और ब्रह्म मीमांसा, दोनों ही फलार्थ में जीव परक नहीं हैं । एवं सति पूर्व कांडेऽवान्तरफलान्युक्त वै तस्यैवानन्दस्यान्यानि भूतानि मात्रामुपजीवंतीति श्रतैर्निरवध्यानंदात्मकमेव परमं फलमिति तद् विवक्षमारणा पूर्वं सामान्यत - आह ससाधनं तैत्तिरीये - " ब्रह्मविदाप्नोति परम्" इति अक्षयब्रह्मवित् परं ब्रह्माप्नोतीत्यर्थः । श्रत्र पर शब्दस्य पूर्व - परत्वे तदित्येव वदेत् । पूर्वं ब्रह्मोक्त वाग्रे यत् परमित्याह तेन सान्निध्यात् तत एव परपुरुषोत्तम रूपमेवात्राभिप्रेतमिति ज्ञायते । इससे यह भी समझना चाहिए कि पूर्वमीमांसा में जो कर्मों के स्वर्गादि साधन कहे गए हैं वे भी इस श्रानंदमय के अंशमात्र ही हैं। प्रखंड आनंद ही परम फल है, यही श्रुति का सूक्ष्मार्थ है । साधन सहित फल का उल्लेख, जैसे कि तैत्तिरीय में है - - " ब्रह्मवेत्ता पर की प्राप्ति करता है" इत्यादि, इसमें. पर शब्द का पूर्व - परत्व भाव होने से वाच्यार्थं होगा "वही ऐसा हो जाता है ।" इसमें पहले ब्रह्म शब्द कहकर आगे पर का निर्देश करके सांनिध्य दिखलाया गया है जिसका तात्पर्य होता है कि "वही पर पुरुषोत्तम रूप हो जाता है ।" किंच. प्रतिवादिना तदा प्तिर्ज्ञानात्सिकैव वाच्या । तथा सति ब्रह्म प्राप्तो ब्रह्म प्राप्नोतीत्यर्थः स्यात् स चासंगतः, साधनसाध्याभावव्यवहतिश्च । प्रतिवादी (शंकर) पर प्राप्ति को ज्ञानात्मिका प्राप्ति ही मानते हैं, इसके अनुसार तो उक्त श्रुति का अर्थ होगा: "ब्रह्म" प्राप्त व्यक्ति ब्रह्म को
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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