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________________ ४८ इति । प्रादिमध्यरूपे अनूद्य फलत्वेनोपपादितम् । तन्निरूपकस्यापि तत्तुल्यफलत्वं वक्त मन्नमयादीनामपि ब्रह्मत्वेनोपासनमुक्तम् । ___ आनंदमय ब्रह्मपरक नहीं है, ऐसा संदेह क्यों किया गया और इस शब्द के ब्रह्मपरक न होने से प्रपाठक की असंगति कसे है ? यह समझ में नहीं आता । देख- "ब्रह्मविदाप्नोति परम्" इस वाक्य में ब्रह्मवेत्ता की पर प्राप्ति दिखलाई गई है, इस नियम के ज्ञेयांश की कारणता के रूप में प्रानंदांश को प्रस्तुत न करके जडता के निराकरण के लिए 'सर्वज्ञ पानंद स्वरूप है' इत्यादि फल का निरूपण किया गया है, उक्त निरूपण के लिए ही प्रपाठक को प्रस्तुत किया गया है । इस प्रपाठक में जो अन्नमय आदि की उपासना का उल्लेख है, उसी के अन्त में ब्रह्म शब्द का स्पष्ट उल्लेख है, उस उपासना का आनंदरूप फल बतलाया गया है, उसे ब्रह्मरूप ही मानना चाहिए । जो लोग अन्नमय आदि शब्दों से, अन्न प्रादि सुखमय पदार्थ अर्थ लगाते हैं, उनके ब्रह्मत्व को नहीं मानते, उन्हें ही प्रपाठक में असंगति प्रतीत होती है । वस्तुतः अन्न आदि को पानंदांश मानने तथा ब्रह्म को उनका कारण मानने पर ही प्रपाठक का तत्त्व समझ में आ सकता है । यदि ऐसा नहीं मानेंगे तो पूरा प्रकरण व्यर्थ का पदार्थ विवेचक संदर्भ मात्र ही सिद्ध होगा । उक्त प्रसंग में कारणता प्रतिपादक "तस्माद् वा एतस्मादात्मनः" इत्यादि वाक्य में आत्मा पद के प्रयोग से प्रानंद की समीपता तथा फलरूप से चिदंश की कारणता बतलाकर, आनंदस्वरूप ब्रह्म की अन्तर्यामिता का प्रतिपादन किया गया है और अन्त में "यह पानंदमय प्रात्मा का उपसंक्रमण करता है" इत्यादि में उसी तत्त्व का पुनरुल्लेख करके उसी को फलरूप से बतलाया गया है । इस प्रकार तत्त्व के निरूपक अन्नमय आदि की भी ब्रह्म रूप से उपासना बतलाई गई है तथा उनका भी कैसा ही फल बतलाया गया है। . तत्र पूर्वपक्षेऽन्नमयादेरिवानंदमयस्यापि न ब्रह्मत्वम्, अन्नमयादितुल्यवचनात् तथैव फलसिद्धिरिति । एवं प्राप्तेऽभिधीयते उक्त प्रसंग पर जो पूर्व पक्ष है कि-अन्नमयादि की तरह, प्रानंदमय का भी ब्रह्मत्व नहीं है तथा अन्नमयादि की तरह उसकी फलसिद्धि भी नहीं है, इसका उत्तर देते हैं - आनन्दमयोऽभ्यासात् ।१।१११॥ मानन्दमयः परमात्मा, नान्नमयादिवत् पदार्थान्तरम्, कुतः । अभ्यासाबू
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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