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श्रवणवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैनतीर्थ
भद्रवाहु और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के कुछ दृश्य खुदे हुए है। यह अपूर्व कौशल का नमूना है ।
यह वह पवित्र मन्दिर है जिसे स्वय महाराज चन्द्रगुप्त ने बनवाया था। इसी मन्दिर पर चामुण्डराय को स्वप्न आया था कि यदि तुम सामनेवाले पहाड पर एक स्वर्णवाण छोड़ो तो वाहुवली तुम्हे यही दर्शन देगे। ६. चन्द्रप्रभु बस्ति
यह मन्दिर ४२ फुट लम्बा और २५ फुट चौडा है। ८ वे तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभु भगवान् की ३ फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति है । इस मन्दिर मे एक सुखनासि, गर्भगृह , नवरङ्ग और एक ड्योढ़ी है । सुखनासि मे उक्त तीर्थङ्कर के यक्ष और यक्षिणी श्याम और ज्वालामालिनी विराजमान है। यह मन्दिर संभवत. सन् ८०० ईस्वी का बना हुआ है। ७. चामुण्डराय बस्ति
यह मन्दिर ६८ फुट लम्बा और ६६ फुट चौड़ा है। बनावट और सजावट की दृष्टि से इस पहाड पर यह सबसे वडा मन्दिर है। इसमे एक गर्भगृह, एक सुखनासि और एक नवरङ्ग है। इसपर दूसरा खण्ड और गुम्मट भी है। इसमें नेमिनाथ भगवान् की ५ फुट ऊंची मनोहर प्रतिमा है। बाहरी दीवारे स्तम्भो, आलो और उत्कीर्ण प्रतिमाओ से अलकृत है। यह मन्दिर गगनरेश राचमल्ल के मत्री चामुण्डराय ने निर्माण कराया था । मन्दिर के ऊपर के खण्ड में एक पार्श्वनाथ भगवान् की तीन फुट ऊँची मूर्ति है।