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चन्द्रगिरि के मंदिर
यह छोटी पहाडी समुद्रतट से ३०५२ फुट है। इसे चिक्कवेट और चन्द्रगिरि भी कहते है। पुराने शिलालेखो मे इसे कटवप्र और कन्नड़ मे कलबप्पु भी कहा गया है। यह पहाड़ी तीर्थगिरि और ऋपिगिरि के नाम से भी प्रसिद्ध रही है। यही वह पवित्र पहाडी है जिस पर अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामी ने अपना मरण निकट जानकर तपश्चरण का अन्तिम आधार संन्यासमरण किया। यही सम्राट चन्द्रगुप्त ने उनकी परिचर्या की और अपना भी शेष जीवन इसी पहाडी पर विताया।
इस देवमन्दिर को छोड कर इस पर्वत पर शेष मदिर सव एक ५०० फुट लम्बी और २२५ फुट चौडी दीवार के घेरे के अन्दर है। समस्त मन्दिर द्राविडी ढग के बने हुए है।
चन्द्रगिरि पर्वत पर के अधिकाश प्राचीनतम शिलालेख या तो पार्श्वनाथ वस्ति के दक्षिण की शिला पर उत्कीर्ण है या उस शिला पर जो शासन बस्ति और चामुण्डराय वस्ति के सन्मुख है। १. शांतिनाथ बस्ति
यह मन्दिर २४ फुट लम्बा और १६ फुट चौड़ा है। इसमे एक गर्भगृह, एक सुखनासि और एक ड्योढी है। इसकी