________________
मंदिर और स्माल
२५
दे रही है कि परिग्रह और भौतिक पदार्थो की ममता पाप का मूल है। जिस राज्य के लिए भरतेश्वर ने मुझसे संग्राम किया, मैने जीतने पर भी उन राज्य को जीर्णतृणवत् समझ कर एक क्षण में छोड़ दिया । यदि तुम गाति चाहते हो तो मेरे समान निर्द्वन्द्व होकर आत्मरत हो ।
एकबार स्वर्गीय ड्यूक आफ वेलिंगटन जब वे सरिंगा पाटन का घेरा डालने के लिए अपनी फौजो की कमाण्ड कर रहे थे, मार्ग में इस मूर्ति को देखकर आश्चर्यान्वित हो गए और ठीक हिसाव न लगा सके कि इस मूर्ति के निर्माण में कितना रुपया तथा समय व्यय हुआ है । अभी हमारे प्रवान मंत्री माननीय जवाहरलाल नेहरू भी उस मूर्ति को देखकर अत्यन्त प्रभावित हुए ।
गोम्मटेश्वर कौन थे ?
गोम्मटेश्वर कौन थे और उनकी मूर्ति यहा किसके द्वारा किस प्रकार और कव प्रतिष्ठित की गई, इसका कुछ उल्लेख शिलालेख न २३४ (८५) मे पाया जाता है। यह लेख एक छोटा-सा सुन्दर कन्नड काव्य है जो सन् १९८० ई० के लगभग वोप्पनकवि के द्वारा रचा गया था, वह इस प्रकार है ।
"गोम्मट, पुरुदेव अपर नाम ऋषभदेव प्रथम तीर्थङ्कर के पुत्र थे। इनका नाम वाहुवली या भुजवली भी था । इनके ज्येष्ठ भ्राता भरत थे । ऋषभदेव के दीक्षित होने के पश्चात् भरत और वाहुवली दोनो भाइयो मे साम्राज्य के लिए युद्ध हुआ, इसमे वाहुवली की विजय हुई, पर ससार की गति से विरक्त हो उन्होने राज्य अपने ज्येष्ठ भ्राता भरत