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श्रवणवेत्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ है। घटनो से नीचे की ओर टागे खर्वाकार है। मूर्ति की आखे, इसके ओष्ट, इसकी ठुड्डी, आखो की भीहे सभी अनुपम और लावण्यपूर्ण है । मुख पर अपूर्व कान्ति और अगाध शान्ति है। घुटनो से उपर तक वाविया दिखाई गई है, जिनसे कुक्कुट सर्प निकल रहे है, दोनो पैरो और भुजाओ से माधवी लता लिपट रही है। मुखपर अचल ध्यान-मुद्रा अङ्कित है। मूर्ति क्या है मानो त्याग, तपस्या और शान्ति का प्रतीक है। दृश्य बडा ही भव्य और प्रभावोत्पादक है। पादपीठ एक विकसित कमल के आकार का बनाया गया है। नि सदेह मूर्तिकार ने अपने इस अपूर्व प्रयास में सफलता प्राप्त की है। समस्त संसार मे गोम्मटेश्वर की तुलना करनेवाली मूर्ति कही भी नही है। इतने भारी और विशाल पाषाण पर सिद्ध हस्त कलाकार ने जिस कौशल से अपनी छैनी चलाई है उससे भारत के मूर्तिकारो का मस्तक सदैव गर्व से ऊचा रहेगा।
बाहुबली (गोम्मटेश्वर) की मूर्ति यद्यपि जैन है तथापि न केवल भारत, अपितु सारे ससार का अलौकिक धन है । शिल्पकला का वेजोड रत्न है, अशेष मानव जाति की यह अमूल्य घरोहर है। इतने सुन्दर प्रकृतिप्रदत्त पाषाण से इस मूर्ति का निर्माण हुआ है कि १००० वर्ष से अधिक बीतने पर भी यह प्रतिमा सूर्य, मेघ, वायु आदि प्रकृतिदेवी की अमोघ शक्तियो से बाते कर रही है। उसमें किसी प्रकार की भी क्षति नही हुई और ऐसा प्रतीत होता है कि शिल्पी ने इसे अभी टाकी से उत्कीर्ण किया हो।
गोम्मटेश्वर की मूर्ति आज के क्षुब्ध ससार को देशना