________________
ऐतिहासिक इतिवृत्त
समृद्धि यहां के रत्न-सदृश अमूल्य साहित्य, कला-कौशल, मन्दिरो तथा मूर्तियो, उच्च परम्पराओ और सत्य तथा अहिंसापूर्ण निर्मल चरित्र इत्यादि से प्रकट होती है और यहां का अध्यात्मवाद यहां के ऋपि मुनियो, साधु-साध्वियो और आत्मज्ञानी विद्वान्, सहस्त्रो आचार्यो के तप-त्याग के कारण भारत सचमुच पुण्य-भूमि और सतो का देश कहलाता है।
। संसार के इतिहास में ऐसे महापुरुष विरले ही मिलेगे, जो इन चारो ही श्रियो से सम्पन्न हो। भारत को ऐसे जिन महापुरुषो को जन्म देने का गौरव प्राप्त है वीरमार्तण्ड चामुण्डराय उनमे से एक है। इनको चामुण्डराय भी कहते है और गोम्मट उनका घरू नाम था। 'राय' दक्षिण के गग नरेश राचमल्ल द्वारा मिली हुई पदवी थी। इन के वाल-जीवन, गृहस्थ अवस्था की घटनाए अधकार मे है, फिर भी शिलालेखो और कीर्तिगाथाओ से इनके महान् व्यक्तित्व का पता अवश्य लगता है। ये जैनधर्मानुयायी और ब्रह्मक्षत्रिय वशज थे जिससे अनुमान होता है, कि मूल मे इनका वश ब्राह्मण था, पर वाद मे क्षत्रिय कार्य को अपनाने के कारण ये क्षत्रिय माने जाने लगे थे। चामुण्डराय ने दीर्घजीवन पाया, क्योकि इन्हे गगवंश के एक दो नही तीन शासको के अधीन काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गगवा मैसूर राज्य में ईसा की चौथी शताब्दि से लेकर ग्यारहवी शताब्दि तक रहा है और चामुण्डराय गंगवशी राजा राचमल्ल के मत्री और सेनापति थे। राजा राचमल्ल का राज्यकाल सन् ९७४ ई० से सन् ९८४ निश्चित है ।