________________
८२
श्रवणवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ
पर, वाहूवली-राज का कहना रहा जारी ।
वह यो, जवाब देने को उनकी ही थी वारी ॥ बोले कि-'चक्रवर्ति से कह देना ये जाकर । बाहूबली न अपना सुकाएंगे कभी सर ॥ मै भी तो लाल उनका हूँ हो जिनके तुम पिसर । दोनो को दिए थे उन्होंने राज्य बरावर ।। सन्तोष नहीं तुमको ये अफसोस है मुझको ।
देखो जरा से राज्य पै, क्या तो है मुझको । अब मेरे राज्य पर भी है क्यों दात तुम्हारा ? क्यों अपने बड़प्पन का चलाते हो कुठारा ? मै तुच्छ-सा राजा हूँ, अनुज हूँ मैं तुम्हारा । दिखलाइयेगा मुझको न वैभव का नजारा ॥ नारी की तरह होती है राजा को सल्तनत ।
यो, बन्धु को गृहणी पै न वद कीजिए नीयत : छोटा हूँ, मगर स्वाभिमान मुझमें कम नहीं । बलिदान का बल है, अगर लड़ने का दम नहीं । 'स्वातंत्र' के हित प्राण भी जाएँ तो गम नहीं । लेकिन तुम्हारा दिल है वह जिसमें रहम नहीं ॥ कह देना चक्रधर से झुकेगा ये सर नहीं ।
वाहूबली के दिल पं जरा भी असर नही ।। बेचूंगा न' आजादी को, लेकर म गुलामी । भाई ह बराबर के, हों क्यों सेवको स्वामी ? मत डालिए अच्छा है यही प्यार में खामी । आऊँगा नहीं जीते-जी देने को सलामी ॥'
सुन कर के वचन, राजदूत लौट के आया । - भरतेश को आकर के सभी हाल सुनाया ॥