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________________ दक्षिण के अन्य जैन-तीर्य हुआ। इस पर कितना व्यय हुआ होगा? वरांग क्षेत्र ___ यह स्थान कारकल से ३४ मील है। यहा एक धर्मशाला, कुआं, मकान व विशाल मदिर है। उसमे लगभग २०० छोटीबड़ी प्रतिमाएं है। इस मदिर के सामने के तालाब में पावापुरी के समान कमल फूले रहते है। बीच मे मदिर है। उसके चारो तरफ चारो दिशा में दस प्रतिमाए शातमुद्रा-दशा में विराज रही है। यहा का प्रवन्ध पद्मावति होमचवाले भट्टारक के हाथ मे है । इनके पास इस क्षेत्र सम्बन्धी 'स्थलपुराण' और 'माहात्म्य' बतलाया जाता है। स्तवनिधि यह स्थान बेलगाव-कोल्हापुर रोड पर, वेलगाव से ३८ मील पर रमणीक जगल मे है। यहा भगवान् पार्श्वनाथ की अतिशयवती प्रतिमा है। महावीरजी तीर्थ के समान यहां भी हजारो यात्री मनोति मनाने आते है। यहा चार मदिर और एक मानस्तम्भ है। सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरि ____ इस तीर्थ के सम्बन्ध में निर्वाणकाड मे निम्नलिखित गाथा आती है - "वंसत्यलवणणियरे, पच्छिमभायम्भिकुथुगिरिसिहरे । कुल-देश-भूषण मुणी, णिव्वाणगया णमो तेसि ।" यह तीर्थ वार्सी टाउन से २२ मील कच्ची सडक पर है। वार्सी टाउन को शोलापुर होकर जाते है।
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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