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दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ
सिद्धातमन्दिर और गुरुमन्दिर विशेष दर्शनीय है। चन्द्रप्रभु भगवान् का मन्दिर अत्यन्त प्राचीन और विशाल है। इसके चारो तरफ दो कोट, मानस्तभ और दो हाथी है। चन्द्रप्रभु की विशाल प्रतिमा पञ्च धातुओ की बनी हुई है। घातु की इतनी वडी प्रतिमा अन्यत्र कही देखने में नहीं आई। इस मन्दिर को 'त्रिभुवन-तिलक-चूडामणि' कहते हैं । यह मन्दिर सन् १४२९ ईस्वी में ८-१० करोड़ रुपये की लागत से बना था । इसी मदिर की दूसरी मज़िल में सहस्रकूट जिनालय में धातु की १००८ प्रतिमाए अत्यन्त मनोहर है ।
'सिद्धान्तवस्ति' मन्दिर में 'षटखडागम सूत्रादि' सिद्धात ग्रथ है। हीरा, पन्ना, मूगा, गरुडमणि, पुष्पराग, वैडूर्य, चादी, सोना आदि की ३५ प्रतिमाए है । इन प्रतिमामो के दर्शन प्रायः शाम को तीन से पाच बजे तक पञ्च लोग कुछ भडार लेकर कराते है। यह रुपया मूडबद्री के समस्त मदिरो के जीर्णोद्धार में व्यय होता है ।
'गुरुवस्ति' मदिर में भगवान पार्श्वनाथ की १० फुट ऊची मनोज्ञ प्रतिमा है।
इनके अतिरिक्त मूडबद्री में होसा बस्ति, विक्रमसेठी बस्ति, हीरी व अम्मनोर वस्ति, विट्टकेरी वस्ति, कोरी बस्ति, लिप्पद वस्ति, देरमसेठी वस्ति, कल्लु बस्ति, छोटी बस्ति, मादयसेठी बस्ति, वैकी बस्ति, केरे वस्ति, पडू वस्ति तथा भट्टारकजी का मन्दिर है। कारकल अतिशय क्षेत्र
यह स्थान मुडबद्री से १० मील दूर है । प्रवन्ध यहा के