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________________ (६०) त्रिक में १११ विमान हैं ४ सुमारणसे ५ सुदसणे व ६ प्रियदसणे ये तीन की दूसरी त्रिक में १०७ विमान हैं और ७ आयोहे ८ सुपडिबढे १६ जसोधरे थे तीनकी ती. सरी त्रिक में १०० विमान हैं. (२४) प्रश्नः पांच अनुत्तर विमान कहां है? उत्तरः ग्रीवेयक से भी असंख्यात योजन उंचे. (२५) प्रश्न: उन दिमान को अनुत्तर विमान किस वास्त कहा जाता है? - उत्तरः अनुत्तर मायने प्रधान अथवा श्रेष्ट इन विमा. नों में रहने वाले देवों सब समकिती हैं प्रथम चार विमानों के देवों जघन्य एक भवमें व उत्कृष्टा तीन भव में मोक्ष जाते हैं सर्वार्थ । सिद्ध विमान के देवों एकही भव में मोक्ष . जाते हैं उनका सुख सब देवों से अधिक हैं. (२६) प्रश्नः वैमानिक देवों में कितने इन्द्र है ? उत्तरः वार देवलोक में दश इन्द्र हैं पहला आठ देवलोक में अकेक इन्द्र है नवमां व दशवां में एक और ग्यारहवां व. वारहवां में एक मिलकर दश इन्द्र होते हैं. (२७) प्रश्नः नवग्रीवेयक और पांच अनुत्तर विमान में कितने इन्द्र हैं ? . उत्तरः वहां रहने वाले सब देव स्वतंत्र हैं प्रत्येक देव खुद को इन्द्र समझा हैं इससे वे सब अहमद्र गिने जाते है. (२८) प्रश्नः वहां देवी होती है या नहीं ?
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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