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(५६) (१८) प्रश्नः किल्विषी देवता में प्रायः कैसे जीव उप .
जतेहैं. ? उत्तरः जिनेश्वर की वाणी के उत्थापक उत्सूत्र गरु
पणा करनेवाले जिनाज्ञा के विराधक ऐसे
जीव वहां उपजते हैं. (१६) प्रश्नः किल्विषी देवों का मान पान कैसा होता है? उत्तर: यहां जैसा ढेड भंगी का मान पान है
वैसा उनका मान पान वहां है वे नजदीक के देवताओं की सभा में विना आमंत्रण जाते हैं व दर बैठते हैं उनकी भाषा किसी को अच्छी लगती नहीं हैं तब भी बीचमें कोई वोले तो "मभाष देवा" ऐसा कह कर
उसको रोक देते हैं. (२०) प्रश्न: नवलोकांतिक देवों कहां रहते हैं ?
उत्तरः पांचवां ब्रह्मलोक देवलोक में. (२१) प्रश्नः उनका मान पान कैसा है ? उत्तरः उनका मान पान बहुत अच्छा है लोकांतिक
देवों मायः समकिती होते हैं तीर्थङ्कर देव को जब दिक्षा लेने का समय आता हे तव सूचन करने का अधिकार लोकांतिक दवों
का है. (२२) प्रश्नः नव ग्रीवेयक कहां हैं ?
उत्तरः ग्यारहवांचा बारहवां देवलोक से असंख्यात
__ योजन उंचे नवग्रीवेयक की तीन त्रिक है. (२३) प्रश्नः वहां प्रत्येक त्रिक में कितने विभान हैं?
उत्तरः १ भद्दे २ सुभदेव ३ सुजाए ये तीन की प्रथम