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________________ (२८) ...। .सर्पिणीकाळ व दश क्रोडाकोडी.सागरोपम का एक उत्सर्पिणीकाळ ये दोनों मिलकर , ... वीश क्रोडा क्रोडी सागरोपम का एक : . . . कालचक्र होता है। (१७) प्रश्नः अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी मायने क्या ? उत्तरः अवसर्पिणी मायने आरा की गिरती हुई दशा. व उत्सर्पिणी मायने पारा की वढती .. ' " " दशा अवसर्पिणी काळ में शनै: २ शुभ , भावों. की हानि होती. जाती है व उत्सर्पिणीकाल में 'शुभ भावों की वृद्धि । । । होती चली जाती है। (१८) प्रश्नः इस बार आरा के बढते जाते व कम होते '' हुये भाव कोनसा क्षेत्र में हैं ? उत्तरः. पांच भरत व पांच इरवृत मिलकर दश ... . . क्षेत्रों में ये वढता घटता भाव वर्त रहा हैं । (१६) प्रश्नः एक अवसर्पिणी व एक उत्सर्पिणी के :. . : कितने आरे होते है ?। . उत्तरः छ, छ । (२०) प्रश्नः ये छ आरे- एक सरीखे. होते हैं या छोटे -. : ... बंडे ? | .. . . . : उत्तरः छोटे बड़े होते हैं। (२१) प्रश्नः एक कालचक्र के कितने आरे होते हैं । . उत्तरः बारह । (२२) प्रश्नः ये बारह आरे के नाम कहो। .
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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