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________________ (८ ) उत्तरः जिस तरह से कई निर्दय ब नीच मनुष्य अन्य मनुष्यों को या जानवर को दुःख देकर आनंद मानते हैं व गम्मत के लिए ही ऐसा अधर्म करते हैं उसी तरह से परमाधामी देवों नारकी को काट कर टुकडे करते हैं व उनको अनेक प्रकार के दुःख देकर मन में अानंद पाते हैं. (१६) प्रश्नः इस तरह करने से परमात्रामी देवों को पाप लगता है या नहीं? उत्तरः हां पाप लगता है व उसका फल भी उनको भोगना पडेगा. (२०) प्रश्नः परमाधामी देवों कितनी जातके हैं ? उत्तरः पंदर जात के १ अरब २ अम्बरीस ३ श्या. म ४ सवल ५ रुद्र ६ वैरुद्र ७ काल ८ महाकाल 8 असिपत्र १० धनुष्य ११ कुंभ ११ वालु १३ वैतरणी १४ खरखर व १५ महाघोष. (२१) प्रश्नः हरेक जातके देवताओं कितने हैं ? उत्तरः असंख्याता. (२२) प्रश्न: परमाधामी देवता नारकी को काटकर टुकड़े कर देते हैं ताहम भी नारकी मर जाते क्यों नहीं? उत्तरः नारकी के शरीर वैक्रिय है व वेक्रिय शरीर का. ऐसा स्वभाव होता है कि टुकड़ा होने पर भी पारा की तरह टुकड़े फिर मिल
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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