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________________ (१२) (२३) प्रश्नः सिद्ध भगवंत को शाता वेदनीय है कि अशाता वेदनीय ? उत्तरः उनको वेदनीय कर्म नहीं है परन्तु अात्मा का स्वाभाविक अनंत सुख में वे विराज मान हैं. (२४) प्रश्नः मोहनीय कर्म के मुख्य भेद कितने हैं ? उत्तरः दो दर्शन मोहनीय व चारित्र मोहनीय. (२५) प्रश्नः दर्शन मोहनीय किसे कहते हैं ? ___ उत्तरः दर्शन, सम्यक्त्व दर्शन अर्थात् समकित होने में अटकायत करने वाला कर्म. (२६) प्रश्नः समंकित मायने क्या ? उत्तरः सच्ची मान्यता.* (२७) प्रश्नः चारित्र मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तरः चारित्र में बाधा डालने वाला कर्म सो चारित्र मोहनीय कर्म. (२८) प्रश्नः चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तरः आत्मा को कर्म से मुक्त कराने वाला साधन. तप, नियम, संयम शील आदि को चारित्र कहते हैं. (२६) प्रश्नः आयु कर्य के मुख्य कितने भेद हैं ? उत्तरः चार.-नारकी का. आयुष्य, तिर्थच का आ * तत्व को भली भांति समझकर उसके उपर श्रद्धा रखना, अर्थात् कुदेव, कुगुरु व कुधर्म को छोड़कर सुदेव, ५ सुगुरु व सुधर्म को आराधना उसका नाम समकित.
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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