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________________ ( ११ ) उत्तर: लोकालोक में रहे हुए रूपी अरूपी द्रव्य तथा सर्व जीवों के अतीत, अनागत तथा वर्तमान काल के सर्व भाव का ज्ञान उस को केवलज्ञान कहते हैं. (१८) प्रश्न: दर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर; दर्शन को यानि देखने का गुण को रोकने वाला कर्म को दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं. (१६) प्रश्न: दर्शन कितने हैं ? उत्तरः चार, चक्षुदर्शन, चतुदर्शन, अवधिदर्शन, व केवलदर्शन. (२०) प्रश्न: इन चारों दर्शन की व्याख्या करो ? उत्तर: चक्षु से देखना सो चक्षुदर्शन, चक्षु के अलावा दूसरी इन्द्रिय से देखना सो अच क्षुदर्शन, मर्यादा में रहे हुए रूपी द्रव्यों को इंद्रियों की अपेक्षा विना देखना सो अवधिदर्शन तथा सर्व जीवों को समय समय प्रति देखना सो केवलदर्शन. (२१) ः वेदनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर: दो; शाता वेदनीय व अशाता वेदनीय. (२२) प्रश्न: शाता वेदनीय और अशाता वेदनीय किसे कहते हैं ? - उत्तरः सुख का अनुभव करावे सो शाता वेदनीय और दुःख का अनुभव करावे सो अशाता वेदनीय..
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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