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'माननीय विचारशील सुहृत्तम पाठकवृंद ! जिस समय हम बहुविस्तृत हिन्दी जैन काव्यसागरकी तरफ दृष्टिपात करते हैं तो हमारी दृष्टिं वहांसे हेटती नहीं है। और - वहां पर चचल मनको भी अपने स्वभावको बाध्य होकर बदलना पड़ता है। मौर वह
अपने द्वारपाल चक्षुयुगलको वहोंपर खड़ाकर भाप इस विस्तीर्णसागरमें मनोनीत माणिक्य
पुंजकी प्रबल ग्रहणेच्छासे प्रवेश होता है । धैर्य विभूषित सज्जनवृंद ! भाप शांतचित्त . .. होकर थोड़े समय के लिये आप भी इस अनंतसागरके तट पर एकाग्रचित्त हो बैठिये ।
थोड़े ही समयमें यह सेवक हिन्दी जैनकाव्योत्तमरत्नपुंज भेटमें सम्मानित कर आपसे .. विदा लेगा। . . .
: . . : . . .प्रथम जिससमय हम जैन हिन्दीपुराण काव्य, आदिपुराण, महापुराण, हरिवंशपुराण, पाडवपुराण, पुण्यातव, यशोधरचरित पुराण, आदि नैन. पुराण काव्यनिकुंभ में घुसते हैं तो शब्दार्थालंकारोंकी शोभासे पूर्ण, एवं च नूतन नामागुणों की सुगन्धित माला
ओंसे सजे हुए एक ऐसे निकुंजमें पहुँचते हैं-जहां पर धर्म, शान्तिका वायुमण्डल प्रतिसमय हमारे त्रस्त, चंचलहृदयको,अनुपमशान्त वैराग्यमें स्थित बनाता है। इस पवित्र निकुंजमें अधर्म, हिंसादुर्गन्धयुक्त वायुको प्रवेश मन्य परिकल्पितं लिंग पुराणादिककी तरह कहीं भी किसी सूक्ष्माति सूक्ष्म छिद्र द्वारा नहीं हो पाता, क्योंकि इन पुराणानिॉनोंकी चारों दीवाले भहिंसारूपी ईंटों तथा शान्ति के गिलाओंसे बहुत मज़बूतीके साथ बनी हैं। जिस तरहसे अन्यपुराणोंमें कपोलकल्पित, नितान्तासंभव, भ्रभोत्पादक तथा हिंसा घणा क्रूरतादि. विषयोंकी, भत्याधिक्य मर्यादाके उलंघन करनेवाला.. वर्णन पाया जाता है। जैसे. कि ब्रह्मानी की उत्पत्ति .पदंमसे हुई है (1) सीता. की उत्पत्ति विना. माता पिताके हुई है (२.) तथा एक गौमें ३३ कोटि देवता. वास करते हैं इत्यादि असंख्य मिथ्या तथा विशेषवासनाओंके जालमें फंसानेवाली कथानों का वर्णन जैसे वैष्णव पुराणोंमें पाया जाता है तैसा वर्णन भव्य, सभ्य, काव्यनिकुंनवृंदमेंसे किसी भी काव्यके सूक्ष्मतमांशमें भी अनुषधानकारियोंके दृष्टिपथ नहीं होता । प्रायः इन वैष्णव. पुराणोंकी ऐसी निर्मूल, अत्यतासंभव हिंसासे आब्यः (प्रचुर) देखकर ही हमारे यूरोपीयलोग
मनगढंत, मिथ्या, भ्रमोत्पादक, मकारके वर्णनके लिये उपमाका काम लेते हैं । "मस्तु । ... हम दृष्टांतस्वरूपमें इनके ( जैन पुराणों के ) हृद्यगद्य इस लेखमें लिखकर इस लेखका वृह:
दाकार न करेंगे । किंतु दिलमें सदैव चुभनेवाले ( हर्मोत्पादक.) यशस्तिलकचरितं पुराणके वारेमें अवश्य लिखेगे । इस पवित्र पुराणको पढ़नेसे राक्षसी प्रतिवाठे मनुष्यके भी हिंसासे घृणा होकर पवित्र अहिंसामय जीवनका संगठन होगा। तथा इस पुराणमें कविनें. किस सौन्दय अनुपम ग्रहितासे वर्णन किया है कि पाठक महोदयोंकि रोमांच खड़े होनाते हैं.