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: दोहा.-भेदज्ञान सावू सरस, सम रस निर्मल, नीर ।
..' घोवी अंतर आत्मा, धोबै निज गुण चीर ॥ ...... बस ! पढ़ द्रव्य ज्ञान और जैन धर्मका यही महत्व और फक्र है कि चिंटी
आदिके शरीरमें रहनेवाला और जलियाना वागसे भी भयंकर यातना भोगनेवाला परतंत्र
आत्मा उन्नति करते करते त्रैलोक्यका शिखामणि होता है जिसकी सच्ची स्वतंत्रता कल्प .. • काल तक क्या कभी भी नष्ट नहीं होती। .. . मन तो विल्कुल स्पष्ट सिद्ध हो गया कि नीव पदार्थ सदाकालसे था है. और . रहेगा । विशेष यह कोई जीव तो गंदे कपड़े जैसी संसारी दशामें रहते हैं और कोई : उज्जल कपडे जैसी सिद्ध दशामें हैं जहां फिर मलिनता नहीं पहुंचती। श्री गोमहसार
आदि महाशास्त्रोंमें जीवोंकी गंदी और उज्ज्वलताकी अवस्थाओं तथा उनके कारणोंका ..वर्णन है जिसका यहां उल्लेख करना गागरमें सागर भरनेके समान नितान्त कठिन है।
केई मतांतर वादी कहते हैं कि मोक्ष होनेपर आत्मा शून्य हो जाता है कोई कहते हैं, परमात्मामें लय हो जाते हैं, कोई कहते हैं कि चिरागके समान बुझ जाता है, कोई कहते हैं कि जड हो जाता है इत्यादि अनेक कल्पना करते हैं । परन्तु हम पूर्वमें स्पष्ट कर आये हैं कि किसी पदार्थके गुण कमी नष्ट नहीं हो सक्ते अतः चेतियता चेतना
चेतता था चेतता है और चेतता रहेगा। - जिस तरह एक छाया पर दृगरी तीसरी मादि करोड़ों छाया समाया करती.
है उसी प्रकार । । ... एक माहों एक राजें एक मार्टि अनेकनो। .:. .... इक अनेकाकी नहीं संख्या, नमो सिद्ध निरंजनो॥ .. ::... - मनुप्यके आकारकी मेनकी एक पुतली बनाइये उसे कारीगरी के साथ लोहेसे - मैंड दीजिये। फिर उसे तीक्ष्ण नांच दिखाइये तो मैनकी खाक भी नहीं बचेगी सब
'उड़, जावेगा । यदि छत्तके. ऊपर बड़ा चुम्बक लगाया जावे तो वह. पुतली ऊपर जा: .: 'लटकेंगी। अब उस लोह पुतलीके अंदर जो पोल है वह सिद्धात्माकी आकृतिकाः दृष्टांत है।
भेदं यही है कि वह: पोल अनीव है और शुद्धात्मा चैतन्य मूर्ति आनंदकंद है । बहुसे मनुष्य मोक्षमें ना टिकनेको एक कैदखाना कहने लगते हैं सो उनका कहना उन स्वराज्य' द्रोहियोंके समान है जिन्हें गुलामगीरीकी वंद-आदते बहुत कालसें पड़गई है। उन्हें स्वराज्यकी प्राप्तिमें दुख ही दुख दिखता है वे स्वराज्य नहीं वांछते, दासता ही के टुकडोंमें प्रसन्न हैं। . ..........