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ऐसा नियम या इन गुणका साहचर्य प्रायः सभी अनुभूत पदार्थोंमें मिलता है तब इसी ..
कांटेसे हम सभी लीय पदार्थोंका स्वभाव बेरोकटोक यथार्थ जान सक्ते हैं ।
अतएव कोई महाशय जो ऐसे सिद्धांत बनाते हैं कि " जलमें स्पर्श रस तथा रूप है, अग्निमें स्पर्श तथा रूप है। तथा वायुमें केवल स्पर्शगुण ही विद्यमान है। उनका यह सिद्धान्त स्वयमेत्र फिसलकर वराशायी हो जाएगा । क्योंकि जलमें जब कि रस रूप स्पर्श पाये जाते हैं तब उसका अविनाभावी गघ उसमें अवश्य रहेगा । अग्निमें कोई न कोई गंध तथा कोई न कोई रस अवश्य है क्योंकि उसमें स्पर्श तथा रूप मिलता है इसी प्रकार वायु में भी जब कि शीत या उष्ण स्पर्श एवं बजन पाया जाता है तो उसमें गंध, रूप तथा रस भी अवश्य होने चाहिये । जैसे आपका फळे ।
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बात केवल यही है कि इन पदार्थोंमें कोई कोई गुण मुख्य तथा व्यक्त हैं शेषके गुग उतने तीन नहीं हैं किंतु हैं अवश्य। जैसे हींगमें वेलाके तेलमें केवल गंध गुणकी तीन है किन्तु उसमें रस भी अवश्य रहता है, यही दशा उपयुक्त पदार्थोंकी मी हैं । इस लिये भले प्रकार यह सिद्ध हो गया कि प्रत्येक पौलिक पदार्थमें स्पर्श, रस गध तथा रूप ये चारों गुण अवश्य पाये जाते हैं । अतएव प्रत्येक स्पट में इन गुणों में से किसी एक गुण रहने पर अवशिष्टके, इतर गुण भी अवश्य रहेंगे । इस पल द्रव्यका भी व्याख्यान शक्तिसे हि भूत है। अतएव इसके विशेष परिचयसे विराम देते हैं ।
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भजीव द्रव्यमें एक प्रकारको द्रव्य तो सिद्ध हो गई जो कि पुद्गल है । अब उसी अजीब नृपको इतर प्रकार भी खोजना चाहिये ।
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यह विषय समीसे सुपरिचित है कि कार्यको देखकर उसके कारणका अनुमान होता है । जैसे वृक्षको देखकर जान देते हैं कि इसको उत्पन्न करनेवाला प्रथम ही चीज अवश्य होगा। मिट्टीकी छटो डली को देखकर पता लगा लेते हैं. कि इसको बनानेवा सुक्ष्म पृदळ परमाणु हैं । भादि । इसके प्रथम ही यह बात मी ध्यानमें रहे कि प्रत्येक कर्यको उत्पन्न करनेके लिये जिस प्रकार उपदान कारणका उपस्थित होना आवश्यक है उसी तरह निमित्त कारणका होना मी अनिवार्य है । क्योंकि सून रक्खा भी रहे किन्तु जुलाहा तथा करवा उपस्थित होगा तो वस्त्र कभी न बन सकेगा । अस्तु । संवर्ती जीव तथा पौलिक सभी पदार्थोंका एक साथ " गमन होना किसी बाह्य निमित्त कारण से ही हो सक्ता है अन्यथा नहीं । जैसे तालाब में एक साथ इधर उधर
घुमनेवाले मछली, मेंढक आदि हजारों जलमंतु ओंके आवागमन में जल निमित्त कारण
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उसके बिना उनका गमन नहीं हो सक्ता है । तथैव अनेक जीव पुद्गलों का ठहरना भी 'किसी निमित्त विना नहीं हो सक्ता है । इसलिये उस निमित्त कारणका होना भी अनि