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जाता है । एवं निमित्त उत्पाद व्मय अगुरु उघुः पूर्व ं षड्रूप गुण हानिसे होता है पर निमित्त उत्पाद व्यय अश्वादिको गति स्थिति अवगाह देनेसे होता है। धर्म अधर्मका सा उनके कार्य द्वारा किया जाता है क्योंकि कार्यके में कारणका सद्भाव अवश्यंभावी है जैसे किं घूमके सद्भावमै अनिका होना अवश्य है। जब कि जीप पलों में गति स्थिति देखते हैं तो उस गति स्थिति का कोई न कोई कारण अवश्य होगा और वह धर्म ही है यानी गतिका कारण धर्म और स्थितिका कारण अधर्म है ।
कारण अभी
शंका- न कि गत स्थितिका कारण पृथ्वी भी हो सक्ती हैं तो अदृष्य वर्मा धर्मकी कल्पना नहीं करना चाहिये। ऐसा भी नहीं कहलके, क्योंकि पृथ्वी जळ आदि आश्रय रूप है अतः गति स्थिति हेतुकं विशेष कारण धर्म अधर्म मानना ही चाहिये
. शंका - आकाश द्रव्य सर्व व्यापक है अतः काश ही गति स्थिति में साधारण * निमित्त कारण हो सक्ता हैं । धर्म अधर्म मानेकी पुनरपि भवश्यक्ता नहीं है, ऐसा नहीं कह सके क्योंकि आकाशका अनगाहन उपकार है अन्यका याना धर्मका उपगृह अन्य 'यानी आकाशका नहीं हो सक्ता अन्यथा किसी मी पदार्थकी सुव्यवस्थिति न हो सकेगी । अन्यच्च यदि आकाशको गति हेतु का कारण मानोगे, आकाश अलोकाकाशमें मी है । वहां पर भी इसको गति स्थिति हेतु ग प्राप्त होकर जीव पृढलोंका गमन हों, जायेगा तथा च लोकालोकका दिमाग नहीं हो सकेगा । अतः मानना चाहिये कि धर्म अधर्म द्रव्य हैं । लोकालोक विभागकी धर्म अधर्मके विना उत्पत्ति न होनेसे यहाँ लोकालोक विभाग रूप हेतु असिद्ध नहीं है क्योंकि लोसलोक विम गका अनुपावक हेत्वन्तर उपस्थित है । लोक अछोकका विभाग है क्योंकि लोक मान्त है और अलोकाकाश "अनन्त रूप कोई ऐसा वहें कि लो थ तरूप नहीं है सो मी ठीक नहीं है क्योंकि लोक सान्तः “सान्त विशेष होने से मकानादिककी तरह 1
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इस तरह लोककी सान्वता सिद्ध हुई। सारांश यह है कि धर्म धर्मकी सिद्धिके लिये लोकालोक विभागात्यय नुपपत्तिह्ना हेतु है । लोकालोक विभागके लोकस्य सान्तता और लोककी सान्तता सिद्ध करने के लिये स्वता विशिष्ठत्व हेतु है । स्वता विशिष्टत्व प्रत्यक्षागम्य ही है क्योंकि जो २ स्वता विशेष विशिष्ट हैं वे ९ सान्त हैं और मो सान्त हैं वे २ विभग युक्त हैं । जबकि विभाग सिद्ध हो गया तो इस अनुमान से धम
है। लोलोकको अन्यथा ( धर्म अधमके अपानमें उत्पत्ति न होनेसे ) धर्म अधमकी सिद्धि हो ही जाती है । अतः धर्म अधर्मका सद्भाव स्वीकार करना ही चाहिये ।
आकाश द्रव्यको आवश्यक्ता और सिद्धि: ।
आकाशका लक्षण जोवादिक तत्वोंको अवगाहन देना है अर्थात् जो ण्डित और सबको अवकाश देनेकी सामथ्य वाला है उसे भाकाश